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________________ पालदाराही २३३ छंद त्रिभंगी जब लग्गि अत्तिद्रिय बोध निरिद्रिय, इंद्रिय निद्रिय रहित जिना । जीवो नहि पावत तोहि सुतावत, अखिलन पावत रूप दिना ।। तु ही जु अवाच्यो मुनिहि जु जाच्यो, कितहु न राच्यो सर्वगुरु । तू अम्बिल सुवाच्यो नाथ अजाच्यो, निजरस राच्यो देवघुरु ॥३६५1 जो साधु अतंद्रा बसहिजु कंद्रा, मत जिनचंद्रा दिढनु धरै। ते जपहि जु तोही, ह निरमोही छोडि सवोही ध्यान करें। तु है अनुभूती रूप बिभूती, नांहि प्रसुती न धरै । अतिरिक्त विभावो शुद्ध स्वभावो, अमित प्रभावो कालहरे ।।३६२।। तु है अकलंक को ईशचिदं, को नित्य अपंको देवहरी । तु असमजु नाथो है अति साथो. अति बडहाथो रहित अरी ।। तू ही अपरा पर है जु मुधाहर, पूज सुधाकर लोकपती । प्रभूजी अतिपात्रो है अति छात्रो, ज्ञानहि मात्रो शुद्ध जतो ।।३१३॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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