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२२६ महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतिस्व
ज्ञान की । ध्यान को ॥
प्रति जागर तू देव उजागर सोवं नाहि कदापि प्रभू है अटल भाव धर एक अचल ग्रमल भाव जगदीस, मलिन
भाव जु सदा ।
नांही कदा ॥ ३६३।।
तू जु अनंग विभाव, दार तु जु असंग स्वभाव सुधारक त ज् अचित्य प्रभाव पशु है तू अहिंस स्वरूप नाहि को
कोई
सहै ।
घीश है |
सासना ! नासिता ।। ३६४ ।।
ईश है ।
तु जु अशुद्ध विभाव नाशनो सदा प्रभेद स्वभाव भासनो धीस है नाहि अभव्य स्वभाव, भव्य भाव जु नही ।
नू शुद्धत स्वभाव परिणामिक सही ।। ३६५।।
चौपई
तुहि प्रलंधि भाव भूषो जु, तु हि अपावन जन दूषो जु ।
तू ज् अमूरत भाव सुपषो तू जु अधूरत भावा सषो ।। ३६६ ।।
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लूजु अगोध भाव दंडोजु, तू जु अनित्य भाव षंडोजु |
तू जत्व विकासी देव तू अचलत्व प्रकास प्रभेत्र || ३६७।।
तु जुग्रलोक भाव को जांन,
तु जु अत्रित्यभात्र करि भरो, तुजु अलक्ष भाव हैं वरो । अवलोकन कर गुणवान ।। ३६८ ।। अखिल भाव भावक तू नाथ लोकाकास प्रमाण प्रनाथ तू जु अमोहत्वादि प्रधान, अस्तित्वादिक गुणह निधांन ॥ ३६६ ।।
तू जु अलोभत्वादि प्रभार तुजु प्रथमगति तारनहार । तु जु अधोगति हारी हरो, तू अरिच विदारी से || ३७०||
तुजु प्रशुभ गणटारक ईश, तू जु यशीलें होलक धीश । तू प्रयत्न विधाटक देव, अकर रोग बर्जित प्रतिभेत्र || ३७१ । । अखिल भोग डारक जोगीस, अखिल जोग टारक भोगीस मन बच काय तर जे जोग, तिन से रहित अमित सुख भोग || ३७२ ।।