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________________ अदया अदतन परम तू जु तू जु अशील तरण अवहाला, प्रबला जाकै, अनृत अब्रह्म गद्धि न ताकै । अकिंचन है भगवानां, दु जति होला ऩ अात्म बारहखड़ी अन "अवला संग न जसुधन शनां ।। ६४ ।। अतुल बली अभिलाष शील स्वरूप अरूप हीला एद न तेरै, निरूपक तू जु अकिंचन मूल गुसाई, शील तजु प्रजंघा वज्ञ सुजंघा, अकेला कर्म दहंता, तू जु अचेला एक अनंता । एनन तू जु अलंध्य असंधि सांई ॥ ६६ ॥ प्रेरं ।। ६५ ।। तू जु अलंघा किनहिन लंघा । विवजित ज्ञांनी, अंतरहित अंतरगति जांनी १६७॥ अतिभार ध अनंत सुखी प्रतिभोग करैया । उपभोग प्रपूरण स्त्रांमी, अति तिक्षाहर क्षम इक तूही, त् जु प्रयोगी जोग अकासी ||६८ || तजु प्रदंत्रि दंभ न जाऊँ, तू जु अमांना अजित प्रभूहो। तू जु अचंती कपट न तार्क ॥ ६६ ॥ १.७५
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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