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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तू अभिधाता अतिगणपाता,
तू जु प्रमाता नाथ अधाता । अतिगुण-पूरा प्रतिसयधारी,
अतिभवदूरा निकट विहारी ।।५८|| अमराणी इक तोकौं बंद,
इक भव घरि वह कर्म निकंदे । अमरेस्वर अमरांणी दोऊ,
शची सुधर्मा तो मय होऊ ।। ५६ ।। प्रब्रह्मनिन अधिक जिदा.
ब्रह्मचर्य धर तु जू मुनिंदा । अवला निदक तू जु प्रभूजी,
अवल विलोकइ तू जु विभुजी ।। ६०।। तू जु अगृद्ध सुगृद्धि न तेरै,
अति जु अकिंचन रच न प्रेरें। परम अकिंचन प्रकट करेवा,
अदुरित रूप जु अदुरित देवा ॥६१।। अवला-तजक अलपट झांनी,
अवला अधमपुरी परवांनी । अदयावजित श्रीपति स्वामी,
अदया नर्कपुरी पदगांमी ॥६२॥ अधम पुरुष अदया कौं लागें,
___ त्यागि अहिंसा पाहि पागें । ते सठ लहाह न शिवपुर वासा,
दुरगति भोग लहैं अघदासा ॥६३।।