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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सदा ज पासनाथ जो, रहै न जीक नाथ जो। सही जु वीरनाथ जो, महासुवीरनाथ जो ।। सदा जु बर्द्धमान जो, सही सुवर्द्धमान सो। मति करो गतिकरो, जु सन्मती अमान सो।।३।। प्रतीब वीर धौरवीर, है प्रभु सुनौर जो । बस सदा जु पाप मैं, हरै जु सर्व वीर जो ।। ज पासि है अपासि है, प्रभु जु सर्वनाथ सो। अनंत है जु एक रूप, तीर्थनाथ नाथ सो ॥४॥ इत्यादि है अनंत नाम, एक वीतराग जो । अनादि है अनंतधाम, बाहिस्यौं जु लाग जो।। महाविदेह क्षेत्र प्रादि, एकसौ जु सतरी । त्रिपंच कर्मभूमि माहि, जे विभू महत्तरी ।।५।। जिके जु अर्द्ध सिद्ध साधु, केवली निरंजना। मरणाधिपा श्रुताधिपा, जिनाधिपा अरंजना ।। सुरंजना सर्व जु लोक, भारती जिनोद्भवा । मु. जु देऊ शुद्ध तत्त्व, ईश्वरी मुखोदभवा ।।८६।।
दोहा सरस्वती स्तुति
सरवग के मुखते भई, सदा सारदा देवि । वह ईश्वरी भारतो, सुर नर मुनिजन सेवि ।।७।। अक्षर जो शरि है नही, अनिधन अवितप देव ।। सोई अक्षर बावनी, प्रकट कर अभिलेख ।।८।। तेतीसौं विजन जिके, सुर चौदा सव होय । जिह्वा मूली पुलतजो, गज कुभा कृति जाय ।।८६ ।।