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अध्यात्म बारहखड़ी
महायती अजीत जो, असंभबो च शंभयो । सदाभिनंदनो जिनो, मतीशनाथ नभवो ।। सुपद्मनाभ पद्म जो, निपद्मनाथ नाथसो । सही सुपास है प्रभु, रहै जु पामि साथ सो !७७१३ सुचंद्रनाथ चंद्रधार, चंद्रकोटि ज्योतिसो । अनंतज्योति धार जो, अनंतसूर छोति सो ॥ सुपुष्प तुल्य दंत यस्य, पुष्पदंत कंत भो । सुशीतलो श्रियंकरो, श्रियांसनाथ संतसो ।।८।। सदा जु वास वसूज वासुपूज्य देव जो । सुनिर्मलो अनंत जो, सुधर्मनाथ सेव जो ।। सही सु सांतिनाथ है, प्रशांत सर्वकारको । वही जू कथवादि जीव, रक्ष को उधार को ।।७।।
जु कुथवादि जीवनाथ, कुथनाथ देव सो । अरो अजो रजोहरो, हमैं जु देऊ सेव सो ।। सुमल्लनाथ मल्लिनाथ मोहमल्ल मार जो । अमतजीत देव जो, सुव्रतनाथ सार जो । ८०॥ मुनीश ब्रत्तदायको, जिनो मुनीसुव्रत को । नमैं सुरासुरीतरा, नमीशनां प्रवत्त को ।। नहीं च कृष्ण भाव सो, सदा जु कृष्णरूप सो। सही जु कृष्ण ध्येय है, सु नेमिनाथ भूप सो।।८।। ययुलेशनाथ जो, सु यादवो उधार वो । शिवा जु देवि तार को, समुद्रजीत पार को 11 प्रभो गीरीश नायको, सुराज संविडार को। सु बालब्रह्मचारको, सुराजलं उधार को ।।८२॥