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________________ अध्यात्म बारहखड़ी तु ही मुनीश वृद्धि दो, स्व ऋद्धि दो निरंतरी । अनंतभाव व्यक्ति दो, प्रयुद्ध है क्षमंकरो ॥ अरूप को विसुद्ध जौ । निकृप को प्रसिद्ध जौ ।। ५४ ।। अनादि ब्रह्मरूप को, महाधि लछिमूल जो क्षमापरो परापरो, परंपरो हितंकरो मितंकरी, दयाकरो महादेव तू नही विभु प्रभु महाप्रभू स्वभू अभू जगीसही ॥ ५५॥ दीदी नराधिपो सुराधिपो अनादि काल के जु क तु ही जुनहि बाल है, अनेक एक ज्ञान रूप, वरंकरो 1 कृपाकरो || तुही तुही तुही सही, न तो समोन्य दूजही । जिहां तिहां लटें जु साधु, एक तोहि पूजही || तुही यती अन को, अगर्व को पवर्ग की । अव को सुसर्व को, मुनीश ध्येय सर्ग को ।। ५६ ।। " 1 1 फरणाधिपो तुझं भजे । दासतें परे भजे ॥ न वृद्ध है युवा न है । ईश तू निधान है ॥५७॥ जिनोत्तमो जिनोत्तमो, जनोत्तमो जगोत्तमो । वरोत्तमो बुधोत्तमो नरोत्तमो निजोत्तमो ॥ परोत्तमो पुरोत्तमो धुरोत्तमो गुरोत्तमो । सुरोत्तमो सतोत्तमो सितोत्तमो हितोत्तमो २५६८ ।। संजोग को अजोग को, सबोध को अबोध को । स्वसोध को निरोध को || अरोग को प्रसोग को, अलोक को सलोक को, अथोक को सथोक को । अनोध को प्रमोघ को, विवोध को अरोध को ॥५६॥ १५७
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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