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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
नमो नमो वा देव कौं, द्रध्य भाव मन लाय । सबही ते न्यारो रही, सेऊ बाके पाय ।।४८।।
छंद नाराच
तू कर्मनाग केहरी, तुही जुहै नृ-केहरी । प्रकृत्य भाव दूरगो, तुही जु देव है हरी।। प्रभू जु केबलात्म को, सही जिनो हो हरी । गुण अनंत नायकी, तु ही गणेश है धुरी ।।४।। तुही जिनेश सांकरो, सुखकरो प्रजापती । तुही हिरण्यगर्भ को, अगर्भ को धरापती ।। महा स्वशक्ति पूरको, तुही जिनो रमापती । रमाजु नाम मां गह, शाल रूप है दी: :: ::* तुही विशेष चा विशेष, शक्ति ते अनंत है । मुचिद्विलाम ज्ञानक्ति, दृश्य शक्तिकंत है ।। अबाप्त रोम महाजु सत्व, तू जु है तमंहरो । विधिकरो दिनकरो, शिबंकरो रमावरो ॥५१॥ सुयोगिनाथ नायको, भक्हरो मृधाहो । सुधातरो उमावरो, जपं जुता हिमाधगे ।। सुनायको विनायको, सही स्त्रयोगदायको । अकाय को अमाय को, सदा सुबुद्ध नायको ।।५।। निजधरो परकरो, परंहरो यतीस्वरो । शिवोभ वोधवो सदा, शिवो सही रमाधरो ।। तु ही जिनेंददेव, और दूसरी जु भेदनां ।
सही जु शक्ति व्यक्ति रूप, पाप पुण्य छेदनां ।। ५३।। ४ - छंद संख्या ५१ मूल प्रति में नहीं है ।। x छन तो है, पर संस्या ५४ नहीं है।