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१५४ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्
गणनायक गणिनाथ जौ, शक्ति मूल शक्तीश जो
शक्ति अनंत मुनिंद । शक्ति रूप जिनचंद ||२२|| वीरज शक्ति अनंत । अमित शक्ति भगवंत ।। २३ ।।
ज्ञान शक्ति द्रिग शक्ति जो सुख शक्ती युत जिन प्रभू
अंतर बाहिर तमहरन, भानुपती जिनदेव 1 वुद्धि प्रदायक कुछ जो, सुगत सहित सुखदेव || २४||
सुमति सुगति दातार जो जिन गुरु देव दयाल | नागर नित्य विसाल जो, थिर चर को प्रतिपाल ||२५||
गणपति पति जु समूह को, गणाधर पूज्य जिनिंद । नायक सबको है प्रभू, रहित जु नायक इंद ॥। २६ ।। नाम विनायक और नहि, वहे विनायक देव ।
सरसुति जाके मुख विर्ष करीहो ताकी सेव ||२७||
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क्षेत्र जु कहिये विधी, स्वपर क्षेत्र विनु भमं । असंख्यात परदेस जो, सो निज क्षेत्र सु मर्म ||२८||
पर क्षेत्र जु पर द्रव्य है, लोकालोक प्रकास | लोक जु कहिये पुंजधर, सकल द्रव्य परकास ।।२६।। हैजुअलोक सु एकलो, जा मैं श्रवर जु नाहि । स्वपर क्षेत्र पालक प्रभू, क्षेत्रह पालक हांहि ॥ ३० ॥ क्षेत्र जु कहिये देह को, ताकी पालक जीव । जीव तर पति जिनवरा, क्षेत्रपाल पति पीव ॥३१॥ क्षेत्रज्ञो क्षेत्राधिपो, क्षेत्रपाल जिनदेव | और न दूजो देव को, एक देव द वा गुणधाम को, जो ज्ञानामृत पूर । प्रति करों सिर नायकें, करि मेरे अघ चूर ||३३|| सेऊ' देव दयाल को, कर्म हनत अतिशूर ।
प्रति भेव ॥ ३२ ॥
द्रव्य कर्म्म नोक पर भाव कम्मं हैं दूर ||३४||