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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
ॐ नमः सिद्ध भ्यो नमः । ॐ नमः परमात्मने । अथ भक्त्यक्षर मालिका वावनी स्तवन । "अध्यात्म मारहखड़ी'- लख्यते ।।
श्लोक
मंगलाचरण--
वंदे मोक्षाधिपं देवं, मोक्षमार्गप्रकाशकं । भुक्तिमुक्तिप्रदातार, भेत्तारं कर्मभूभृतां ।।१।। गौतमादिमुनीन्वंदे, वंदे तत्वप्ररूपणां । बंदे समाधितंत्र च, त्रयीमूलं तु नाटक ।।२।। मुरूमानंदरूपंच, देवं देवेन्द्रकीतितं । वंदे सवात्मरक्षाव्य', ज्ञान ब्रह्म करूपिरणं ।।३।। भक्त्यक्षरमयीमाला, ज्ञानतंरेगा ग्रंथिता । प्रभो ना गुशास्तोत्र, पुष्पं सौरभ्यशालिभि: ।।४।। मुनयो भ्रमरा यंत्र, यांति तृप्तिं महाशया । नत्वा जिनांघ्रि पद्म च, अर्पयामि शिवाप्तये ।।५।।
दहा
वंदो आदि अनादिकौं, जो युगादि जगदीश । कर्म दलन प्रभु जगपति, परमेश्वर चिदघीस ।।६।। बंदी केवलभाव कौं, केवल चिनमय ज्योति । जाके परसत परम सुख, ऋद्धि सिद्धि सब होति ॥७॥ केवल रूप अनूप की, हरिहर विधि रविकत । कहिये श्रुति सिद्धांत मैं, सो श्रीपति अरहत ॥८॥ शक्ति व्यक्ति धर मुक्तिकर, सदा ज्ञप्तिधर संत । वीतराग सरवज्ञ जो, सो गणपति भगवंत ।।६।।