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________________ विवेक विलास नहि सिवाल संसार मैं संसय सोच समान । भरौ श्राल जंजाल सौ मलिन कूप मलबांन ॥ ७६७ ।। " चितवृति चंचल प्रति मलिन, कृमि समूह है सोय । भर पूरित क्रमि तें सदा, तिमर कूप यह होय ।।७६८।२ नहि देवर पास से फिरे कुभाव । मीन जीभ लंपट जिसे, और न चपल सुभाव । ७६६ ।। नहि कठोरता भाव से कोइ काछिया प्रौर। तिनों की ठौर ७७० अंधकूप भवकूप इह सदा केवल बीच स्वरूप | अम्रत बेलि अनूप ।। ७७१ ।। तेहि काग लग जांनि । नाहि सुपक्षी मांनि । ७७२ ।। सकल प्रभुचि की बात | नही कोइ सुचि वात ह्यां काल समान न जालधर, करं जीव को प्रात ॥७७३ ॥ नाहि सुधारु या निकट, नांहि ज्ञान अनूभूति है, मायाचारी मन मलिन, तिनही की कोड़ा इहां परे जीव भवकूप में, को काउन समरत्थ 1 का श्री भगवंत ही दयावंत बड़ हत्थ ।। ७७४ ।। ढारन नय परमार सौ नहि निश्च सी नेज । निक्स उद्यमवंत ही, जिनके रच न जेज || ७७५ || अंधकूप विरूप यह है पाताल जु कूप | विकसितहां तें तुरंत ही होय अभंपुर भूप ।। ७७६ ।। निज मैं करें निवास । फेरि न श्रा भव विषं लोक सिखर राजे सदा निज बॉलति निज गुणमइ सत्ता रूप विभूति । धारे अतुल विलास ।। ७७७ ।। सो बिलसँ प्रति सासती अविनासी अनुभूति ॥ ७७८६ ॥ १२७
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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