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________________ विवेक विलास बुधि बावरी जीव की, विर्ष कषाय स्वरूप । तिसी न विष की बावरी, और महा दुख रूप ।। ६६६।। विष नहि विष विकार सौं, भव भव मरण प्रदाय। इह विष वापी पाम है, पापी मोह रहाय ।६६७।। विष बासना सारिखी, नहि कुवासना जोय। अति कुवासना सौं भरी, धर्म नासना होय । ६६८।। कर्दम कर्म कलंक सौ, कहें न कोविद कोय। । इह कर्दम की वापिका, जहां न अम्रत तोय ।। ६६६॥ मल नहि मिथ्या भाव सौ, ता करि पूरण सोय । अहंकार ममकार के, धरै विकट तट दोय ।।७०० ।। भरी जाल जंवाल सौ, मरी समान विरूप । खरी बुरी दोषाकरी, विष वापी बिडरूप ।।७०१।। जहां सिवाण अपाण से, विषम महा दुखदाय । क्रमि कुभाव अति कुलमले, जाहि लखें तरसाय ।।७०२।। नहि सिंबाल संदेह सौं, भाष संजम धार । भरा सदा संदेह सौं, सुख नहिं जहां लगार ।।७०३।। वाचाली वादी विकल, दुरवुधी दुरभाव । से दादर कुसवद करें, धरै कुकर्म कुभाव ।। ७०४।। रसना लंपट चपल गति, हीन दीन अघलीन। मीन तेहि विचरै तहां, काल कीर अघलीन ।।७०५॥ कठिन कठोर सुभाव ही, कहे कालिवा जीव ।। कीट कलंक भरी सदा, जामैं बहुत कुजीव ।।७०६।। नून भाव अति रकता, तेहि झींगरा जानि । माछर मछर भाव बहु, डासर खल ता मानि ||७०७|| शांत भाब सौ बिमल जल, और न जगत मझार । सो वापी मै नांहि कहू, तापहरण रसधार ।।७०८।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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