________________
विवेक दिलास
सहां जाय मति मित्र तू, तजि पासा को तीर । विष सरिता प्रासा जिसी, और न जानौ वीर ।।५५२।। इह पासा वर्णन भया, जे धार उर मांहि । ते वूडै नहि पास मैं, सुख संतोष लहाहि ।।५५३।। निज दौलति अविनश्वग, सत्ता रूप अनुप 1 बिलसै चेतनपुर विष, चिदानंद चिद्रूप ।।५५४।।
॥ इति प्रासा वैतरणी विष नदी वर्णनं ।।
दोहा
भाव सरोवर वर्णन ..
सुख सरवर मैं जो रमैं, दमैं दोष दुख देव । नमैं नाग नरनाथ मुनि, करै सुरासुर सेव ॥५५५।। ताहि प्रमि नमि भारती, भाषित भगवंत भूप । करि प्रणाम गुरु देव कौं, भाषौं निज सररूप ।।५५६।। सरवर समरस सौ नही, भरयो सहज रस नीर । तरवर सघन स्वभाव से, तहां विराज धीर |१५५७।। अति सोभित सुख सरवरा, हरै दाह दुख दोस । पालि जु सत्ता सारिखी, अचल अटल निरदोस ।।५५८|| इह सर सत्ता मांहि हैं, उठ लहरि अानंद । वस्तु न दूजी जा विर्षे, केवल परमानंद ।।५५६ ।। कीच न कर्म कलंक सौ, नहि कलंक को काम । या सम अम्रत सर नहीं, यह सरवर निज धाम ॥५६०।। नीर जु निर्मल भाव सौ, जा करि तृषा बुझाय । मह सरवर सूकं नहीं, रस भरपूर रहाय ॥५६१।।