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________________ १०६ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व उज्जल निर्मल भाव से, परमहंस नहि और । इहै ज्ञानगिर धर्मगिर है हंसनि की ठौर ॥३३॥ निज वारा कल्लोलनी, व अखंडित धार । ता सम एतदिनि और नहि. जाकी पार न बार ।। ३६४ ।। नाहि ॥ ३६५॥ सो उतरे या गिर की सुख सागर के मांहि । सदा समावै सासतो, यामैं सं गिर परि समरस सरचरा, गिर निज पुर पासि । सदा ज्ञान अनुभुतिमय, वेलि रही परकासि ॥ ३६६ ॥ सदा प्रफुल्लित भावमय फूल रहे प्रति फूलि । महा सुधारस भावफल, फले हरे भ्रम भूलि ॥। ३६७ ।। 1 को अर्गानिका मागनी, लोभ मोह मय आणि देखत ही भावाला, तुरत जाहि तब भागि ३६८।। ज्ञानानि ध्यानागनी, घूम रहित परकास । तेज प्रगति प्रज्वलित है, जा करि भर्म न भास ॥ ३६६ ॥ घूम न कर्म कलंकसौ, ताकी तहां न नाम । नही वाय चल भाव मय, यह परवत निज धाम दुष्ट कठोर कुभावजे पाहण हि वखाए । यह कीड़ा गिर थिर गिरा, रमणाचल कहवाय ॥। ४०१ । १ या गिर मैं नहि पाहणा, कंकर कोइ न होय । क्षुद्र रंक भावानि से, कंकर और न जाए ।।४०२ ।। व व परि सुसंगता, तिसी न सुन्दर काय | है रतननि को पर्वता पहि मां सोय ||४०३॥ प्रति हि कृपणता नान्हपन, जाचकता जग मांहि । . तिसी न नांन्ही कांकरी, ते या गिर परि नाहि ||४०४ ।। सठ पशु नहि कामीनि से. ते गिर परी न लगार । दुष्ट पसु न पिसुनानी से, तिनको नहि संचार ||४०५ ||
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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