SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व तव चुप व रण तें रह्यो, मंत्रिनि की सुनि वात । कंवर विराज घर विष, रसित सकल उतपात ॥१४॥ कहीं और इक वारता, सुनौं चित्त निज लाय । देस विदेह विवेहपुर, है गोपिन सुराय ।।१५।। रांनी प्रथवी सुदरी, रतनवती' सुभ नाम । पुत्री सती सुरूप अति, बहुत गुरणनि की धाम ।।१६।। करी प्रतज्ञा तिन इहै, चंद्रक वेध प्रवीन । होय ताहि परनौं सही, परनर सकल अलीन ।।१७।। याको परतज्ञा पिता, जांनि विचारी एह । जीवंधर सौ या समै, नही सुभट सुभ देह ।।१८।। धनुरवेद वेत्ता वहै, सकल वेद को जान । इह उर धरि कन्या सहित, चाल्यो भूप सुजान ।।१९।। रतनावती का स्वयंबर गयो राजपुर राजई, ले सामग्नि अनूप । रच्यो स्वयंवर जायकै, अद्भुत सोभा रूप ।।२०।। पठई पत्री सवनिकी, भूचर खेचर जेहि । आए पत्री वांचिक, नगर राजपुर तेहि ।।२१।। चंद्रक वेध सथापियो, जहां स्वयंवर साल । कोई वेधि सक्यो नहीं, हुते वहुत भूपाल ।।२२।। देखि सवनिकौं सिथल चित्त, आये सेठ कुमार । जीवंधर जोधा महा, सुदर सुघर अपार ।।२३॥ नमसकार करि सिद्ध कौं, प्रारजिवर्मा ध्याय । जो अपनौं गुर तप निधी, सकल कला को दाय ।।२४।। चाप चढ़ाय लगाय सर, अचल चित्त वरबीर । वेध्यो चंद्रक वेध जो, जीवघर रणधीर ॥२५।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy