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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सुंदर रूप क्रांतिधर कन्या, हम दीखी अद्भुता। अंसी और नहीं मंडल मैं, सुनि किरातपति पूता ।। १५३।। भयो महा कामातुर पापी, जो अन्याय सुरूपा । मुवरण तेज वहुरि मंजारा, सो वनराज परूपा ।।१५४।। पूरव जनम हुती जु सगाई, अव अति आतुर हूवो। काहू भांति ताहि तुम ल्यावो, दीयो तिनको दूधो ।।१५५।। ते अत्ति जोर घोर अघपूरा, लोहगंघ श्रीषेणा । ले करिक यक सांवत लारे, पाये कन्या लेणा ।।१५६।। कन्या की सोवनसाला जो, ताहि ठोक करि पापी । लाय सुरंग सोवती कन्या, लेय गये संतापी ।। १५७।। डारि गये इक लिखि के पत्रा, नाम करण की एई । पहुँचे तुरः पीरपति गुत, राशि ही तेई ॥१५८।। ससि रेखा जुत सनि मंगल ज्यौं, श्रीचंद्रा जुत दोऊ । लखि करि खुसी भयो वनपति सुत, जोवन छक मति खोऊ ।।१५६।। प्रात समै वह वांच्यो पत्रा, जांनी भीलां लीनी । किंनर मित्तर यक्ष मित्र ने, तवं चढ़ाई कोनी ॥१६०।। कन्या के भाई ए जोधा, पठए राव सुमित्रा । तुरत जाय भीलन सौं लरिवा, लागे जुद्ध विचित्रा ॥१६१।। लोहजघ अर श्रीषेण जुद्र, लरे बहुत कवरनिसौं। हारि गये राजा के पुत्रा, जीति सके नहि इनिसौं ॥१६२।। श्रीचंद्रा ले मौन जु बैठो, विनु दरसन जिनराई । अर विनु देखें नगर सोभपुर, भोजन करौं न काई ।।१६३।। लखि के याको विरकत चित्ता, वनपति सुत बहु दूती । तेडी अर तिनपै यो भाषी, याहि करौ रस गूती ।। १६४।। तव वै आई श्रीचंदा ठिग, साम भेद बहु जाने । वोलि महासती सौं पापिनि, तू क्यों चिता आने ।।१६५।।