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महाकवि दौलतराम बासलीवाल--व्यक्तित्व एवं कृतित्व
देखें लोक अनेक, देखि देखि हैं अति खुसी। ताहि वन मैं एक, महा मुनीसुर दिढ़वृती ॥१२८।। हुवे ध्यान लवलीन, ज्ञान परायण पुरणा । मन उनमन तन स्त्रीन, नाम समाधिसुगुप्त जे ।।१२६।। पर ताही बन मांहि, क्रीडा कौं कन्या पिता । प्रायो हो सक नाहि, तहाँ भेटिया मुनिवरा ॥१३०।। तीन प्रदक्षण देय, करि वंदन कर जोरि कैं। जा करि शिव सुखलेय, तो जिन धर्म सुन्यों सुधी॥१३१।। सुरग मुकति दातार, धर्म समान न वस्तु को। जे प्रातम ग्यातार, ते हो धर्म धरै सही ॥१३२।। सुनि के धर्म सुरूप, पूछयो राय सुमित्र ने। हे मुनिगण के भूप, कहाँ करपा कारे श्री गुरु ।।१३।। पूरव भव भरतार, मेरी पुत्री को प्रभू । कौन सु क्षेत्र मझार, तिष्टै कौन दसा धरया ।।१३४।। तव बोले मुनिराय, अवधि शान लोचन महा । मुनी सुचित्त लगाय, नगर नाम हेमाभपुर ।।१३।। तिष्ठं तहां अनूप, वणिक पुत्र सावंत जो। जोवन-वंत सुरुप, लखिमीधर भाई नषै ॥१३६॥
छंदवड दोहा
ए सुनि मुनि के वचन विसाला, हरष्यो राव सुमित्रा । ताही क्षण पुत्री कौं ले करि, चाल्यो बुद्धि विचिया ॥१३॥ संग लये नट नटिनी दोऊ, लये परिग्रह लारा। महुच्यो पुर हेमाभ सितावी, जहां पुत्रि भरतारा ।।१३८॥ जाय तहां पर नृत्य नचायों, लोक देखनै पाया । लोक लार नंदादि हुआया, पट मैं चित्त लगाया ।।१३६।।