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________________ जीवंधर स्वामि चरित करी प्रमांण बात में एह, मेरी सुत पर तुव गेह । तव वैश्रवणदत्त निज सुता, सूर मंजरि जो बहगुगा जुता ।।६१।। २७ तुरतहि भली महूरत पाय, जीवंधर कूं दी पराय ||१२|| भरी रंग रस सुर मंजरी, प्रीतम सौ प्रति प्रीति जु घरी । सूरापन र प्रति सोभाग, जीवंबर सौ नहि बड़भाग || ३ || काष्टांगार का षड़यंत्र - r करें निरंतर कीरति सर्वे काष्ट्रांगारिक कोप्यो तवं । मेरी हस्ती गंध अनूप, प्रसनिवेग हाथिति को भूप ।।६४।। पीस्यो ताहि मान मद् हरचो, कुधी वनिक सुत गरवं भरघो । कुल की रीति तजी मति अंध, सीख्यो राजनि के परबंध ||२५|| aनियनको इह रीति अनादि हरडे सूठि आंवला आदि । बेचै और मोलि ले सही, इन तौ रीति और ही गही ।। ६६ ।। . करें जाति माफिक जो काम, तासों रहे तात की नाम | इह कुल खंगरण कुबुधि सुरूप, मन में भयो रहे सुतभूप ||६|| तव तेयोपुर को रष्टिपाल, चंडवंड नामा कुटवाल । तास भाथ्यो फाष्टांगारि, जीवंबर को तुरतहि मारि ||८|| : है इह बहुत कुचेष्टा भरयो, धन जोबन छकि बहु वहि परयो । इह नृप आज्ञा सुनि कुटयाल, लेकरि अपने सुभट विसाल ||६|| सजि वजि दौरधो काल समान, जीवंधर परि लेवा प्रांत । सबै साह सुत सुनि इह बात, लेकरि साथि भ्रात निज सात ।। १०२ ।। ॐ भाई ग्रायुध भरे, करि साहस तलब परिपरे । तुरत भगाय दियो कुटवाल, जीते जीवंधर गुण माल ॥ १०६॥ बहुरि कोप करि काष्टांगारि, भेजे बहुत सुभट रण कारि । तव दयाल मन में एह, धारी जीवंधर गुग्गु गेहूँ ।। १०२ ।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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