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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
समुझायो फुनि या विधि ताहि, पाली सेठ जतन करियाहि ।
काहू पासि भेद मति कहो, इहें वात गाढ़ी करि गहौ ।। ६६ ।।
यों ही करिहों निसंदेह, यों कहि सेठ ले गयो गेह ।
सेठ नारिको वंश नाम, तासों सेठ खिज्यो गुरणधांम ||६७||
तो मैं बुद्धि नही है मूलि, कहीं कहां लौं तेरी भूलि । वितु परखे जीवतांनांना पुत्र निन ॥६८ दीरय आय मनोहर काय इहै पुत्र तोक सुखदाय | ले ले यहि प्रीति करि पालि, अर व सौं सब भूलि जुटालि ॥ ६६ ॥
तव हरषी सेठानी महा, प्रति आदर तें बालक यहा । जीत बाल भानु को एह, अपराजित वलवंत ग्रह || ७०१ | पुत्रोत्सव
कियो सेठ उछाह अपार, जैसो पुत्र जनम व्योहार । करी क्रिया सूत्रोति सबै धरचो नांम जीवंधर तबै ॥ ७१ ॥ धरचो तवं ओवंधर नाम, जासौं सुधरै सबही काम । अब विजया जखिरगी ले लार, गरुड यंत्र पर सवार ।। ७२ ।। गई पिश्रवन ते ततकाल, दंडकवन पहुँची गुणमाल । जहां परमती तापस रहें, धरि आश्रम कंदादिक हैं ||७३ || तहां रही निज नांम छिपाय, पति वियोगनी दुरबलि काय । जखिणी शोक हरण के हेत, रानि की उपदेशहि देत || ७४ ॥ ॥ जे प्राचीन कथा सति रूप, ते याकै ढिग कहें अनूप । भाखे इह झूठो संसार, साचो जिन मारग भवतार ।। ७५ ।।
जिन जिन मांहि श्रापदा परी, अर आपद में थिरता धरि । तिन तिन की परकारी बात, जिम सुनि या सहु सोक विलात ॥७६॥
जति पर श्रावक की जो धर्म, सो सहु प्रकट करें विनु भर्म । या विधि जीखरणी दे उपदेस, करी धर्म जुत याहि विसेस ॥७७॥