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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
गधोत्कट बरिणक् के पुत्र का अभाव
और सुनौं इक बात रसाल, इक गंधोत्कट वरिपक्क विसाल । अति धनवंत महा मतियत, ताहि पुरि निब मुशवंत ।।२१।। एक दिवस वड माग प्रभाव, देखे सीसगुप्त मुनिराव । नाम 'मनोहर' वन है एक, तहाँ विराजे परम विवेक ।।२२।। तीन ज्ञान धारक जगनाव, तिनकों नमि पूछयौ निज भाव । हे प्रभु, मेरे सुत बहु भये, अलप आय हूँ मरि मरि गये ।।२३।। हुइहैं दीरघ आयु हु कोइ, मुनि बोले, अद्भुत सुत होइ ।
मन धरि बात सेठ इक सुनौं, पाप पुन्य के नाटक सुनौं ।॥२४॥ पुत्र प्राप्ति के लिये भविष्यवाणी----
पुत्र होयगौ तुम्हरै अब, ततखिण मृत्यु होयगौ तवं । तुम जै हो नांषन बन ठांम, तहां पाय हो सुत गुणधाम ।।२५।। महा मंडलिक नृपपद धार, अति विद्यानिधि अति अविकार । सकल त्यागि भव भाव महंत, तद्भव मुकत होई सो संत ।।२६।। ये मुनि वचन सेठ की कहे, ते इक जखिणी ने उर गहे । सूत पर माता की उपगार, करिया गई भूप के द्वार ।।२७।। राज लोक मै पहुँचौ सोइ, रानी की अति बल्लभ होय । गरुड यंत्र ते रक्षा करी, धर्मवंत सेवा चित धरी ।।२।। एक समय मधुरितु परताप, फूले तरवर हर संताप ।
काहू दिवस राज दरबार, प्रोहित आयो प्रात मझार ।।२९ ।। राजा सत्यन्धर की उदासीनता
आभूषण रहिता पटरानि, देखी विजया गुण की खानि। पूछयो कहां विराज राव, मेरे नृप दरसन को भाव ॥३०॥ रांनी भाल्यो पोढे भूप, देख्यो जायन नृप को रूप । असे वैन सुने द्विज जनै, निमत विचारयो मन मैं तवं ॥३१॥