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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतिस्व
दोहा मंगल पाठ--
बरधमान भगवान कौं, करि बंदन मनलाय । जिनवानी की करि प्रणति, नमि गौतम के पाय ।।१।। जोबंधर मुनिराय की, कहीं कथा सुखदाय ।।
बुद्धि पराक्रम रस भरी, सुनो भव्य मनलाय ॥२॥ राजा श्रेणिक द्वारा सुधर्माचार्य से प्रश्न---- एक दिवस रिपक नृपति, समवसरण के मांहि । लखत. फिरत है जिन विभव, जा सम जग मैं नाहि ।।३।। लखि सोभा चउ बननि की, उपज्यो हर्ष अपार । वन प्रसौष में ८ (दलि, देख्या पुनि अविकार ||४|| ध्यानारूढ़ विसुद्ध जो, मगन महा परवीन । मानो बैठो सिद्ध ही, निज स्वरूप लवलीन ॥५॥ देखि अवस्था धीर की, सफल करे नृप नेन । . दे प्रवक्षणा करि प्रगति, धन्य धन्य कहि वैन ।।६।। प्राय सुधर्माचार्य पै, पूछो प्रसन रसाल । स्वामी देख्यो साधु इक, रहित सकल जगजाल ।।७।। अति सुरूप सुदर महा, जो' वन माहि महंत । जीत्या बैठो मदनमद, निसचल निरमल संत ।।८।। तन वच मन बुधि के परं, पहुँच्यो मुनि वरवीर । परमतत्व परचे किया, तिष्ठं गुण गम्भीर ।। कौन पुरिष ए सौ कहाँ, करि किरपा गुरदेव । सुरनर मुनिवर खेचरा, करें तिहारो सेव ।।१०।।
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--. -.-.. मूलपाठ-जीवन