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लिए प्रयुक्त हिन्दी, हिन्दवी प्रादि के संदर्भ में कुछ विचारणीय संकेत उपस्थित करते हैं । खड़ीबोली प्रसार के प्रसंग में ऐसे संकेतों द्वारा घोतित भाषा और उसकी भूल प्रवृत्ति का अध्ययन, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से किया जाना नितान्त प्रावश्यक है। हिन्दी को लिला ना विशेषतः खड़ी छोलो के सबन्ध में महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकालंगे।
___ डा. कस्तूरचन्दजी कासलीवाल ने अपनी बृहद् प्रस्तावना में दौलतरामजी और उनकी कृतियों पर तो अनेकविध प्रकाश डाला ही है, तत्कालीन विद्वत्-मंडली और विभिन्न कवियों का भी संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित परिचय दिया है, जो मूल रूप में पठनीय है। दौलतराम जी का समय संवत् १७४६ से १८२६ तक अर्थात् अठारहवीं शताब्दी उतरार्ध और उन्नीसवीं का पूर्वाद्ध था। इस प्रकार, डा• कासलीवाल जी की प्रस्तावना से उस समय के अन्य महत्वपूर्ण कवियों का परिचय भी प्राप्त हो जाता है । इस समय से सबग्घित जैन साहित्य पर शोध कार्य करने वालों के लिये एक प्राधार भूमि इस प्रस्तावना में मिलती है।
हा फासलीवाल लगभग पिछले २५ वर्षों से किसी न किसी रूप में साहित्य सेवा करते रहे हैं । हिन्दी संसार उनकी विभिन्न कृतियों प्रौर लेखों के माध्यम से उनसे परिचित है । अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियां उन्होंने साहित्य ससार को प्रदान की हैं। जिन तथ्यों, साहित्यिक मान्यताप्रों और परम्परामों को उन्होंने साकार रूप दिया है, उनसे लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों ने अपने मत. मत्तान्सरों में संशोधन वि.ए है । मनक शोधाथियो को उनकी रचनामों से नवीन क्षेत्र, प्राधार भूमि, प्रेरणा पोर मम्बल मिला है। बिना किसी प्रकार का शौरगुल किए वे एकान्त भाव से माहित्य साधना में लीन और 'प्रसूर्यपश्य' रचनाओं को हमारे सम्मुख रख रहे है । स्वतः ग्रंणा के स्रोत और घुन के धनी डा० कासलीवाल जैसे साहित्य साधक और गोधक कम ही मिलेंगे। उनकी सभी कृतियों का साहित्य संसार में बहुत अच्छा स्वागत हुपा है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उनका यह प्रन्थ यथारुचि, साहित्यिक और धर्मभाव-तुष्टि के अतिरिक्त मनन और शोध का प्राधार बनेगा तथा इसका उन अनेक दृष्टियों से अध्ययन किया जाएगा जिनका किंचित सकेत-उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
ऐसी महत्वपूर्ण और सुन्दर कुति के प्रकाशन के लिए डॉ० कासलीवाल तथा श्री दि जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के मंत्री एवं प्रबन्ध कारिणा के समस्त सदस्य हिन्दी संमार को योर से धन्यवाद के पात्र हैं।
डा० हीरालाल माहेश्वरी