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________________ भी विचारणीय सिद्ध हो सकता है । इसके जो दो उदाहरण प्रकाशित 'टीका' में दिए गए हैं, उनको डा. ए. एन. उपाध्ये संपादित 'परमात्म प्रकाश' से मिलाने पर शान्तों में कुछ अन्तर प्रतीत होता है । डा० उपाध्ये के संबधित पाठ में जहाँ 'भासमो', 'दिन-काया', 'दिब-जोमों, मब्द हैं, वहां इस टीका में उनके स्थान पर क्रमश: भासल, दिनकाउ, तथा दिव्च जोम शब्द हैं । शब्दान्त में 'प्रो' और 'उ' के ये प्रयोग स्थर परिवर्तन के लेखन-प्रमाद के कारण भी हो सकते है और भाषा-प्रवृत्ति भी। यदि इसकी विभिन्न प्रतियों के तुलनात्मक अध्ययन से यह सिद्ध हो कि इस भाषा टीका का पाठ एक, विभिन्न परम्परा या उप परम्परा का है, तो निस्सन्देह इसका महत्व बढ़ जाएगा। अर्थों का स्पष्टीकरण टीका में विस्तार से किया गया है जो इसके अध्येतानों को मूल मंतव्य को हृदयं गम कराने में सहायता देता है | संदेश रासक को समझने के लिए जैसे लक्ष्मी चन्द्र कृत टिप्परगक रूपा व्याख्या तथा दूसरी टीका जिस अवचूरिफा कहा गया है, का जो महत्व है. वैसा ही महत्व परमात्मप्रकाश को समझने के लिए दौलत राम कासलीवाल की इस भाषा टोका का है। यहां यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि अपभ्रंश काव्यों को समझने के लिए ऐसी टीकानों का प्राज बञ्जा महत्व है । अपभ्रंश की ही नहीं, हिन्दी की बहुत सी पुरानी कृतियों को भी यदि उनकी टीकाए' उपलब्ध होती, तो और भी अच्छी तरह समझा जाता । राठौड़ पृथ्वीराज की 'वेलि क्रिसन रुकमणी' का भावार्थ उसकी ऐली विभिन्न टीकानों के कारण ही हमको प्रधानतः सुलभ हुआ है। मध्ययुगीन काव्यों में अनेक कथानक झढ़ियों का प्रयोग हुना है । जैन कामों में भी विभिन्न अवसरों पर कथा को वांछित मोड़ देने में इनका प्रयोग किया गया है। दौलतराम जी के उल्लिखित चरित काव्यों में उनका प्रभूत प्रयोग हुआ है। इस दृष्टि से यह एक स्वतन्त्र अध्ययन का विषय है। तत्कालीन समाज और कतिपय स्थानों तथा व्यक्तियों के नामोल्लेख दौलतराम जी की रचनामों में किए गए मिलते हैं। इससे उनके समय के समाज को विशेषत: जैन समाज को समझने का माध्यम तो मिलता ही है, साथ ही उस समय के अन्य जन विद्वानों और कवियों का उल्लेख, जैन साहित्यिक परम्परा का द्योतन तथा उल्लिखित लोगों के विषय में अध्ययन करने की हमारी इच्छा को जाग्रत करता है। एक उल्लेखनीय बात यह है कि दौलतराम जी ने अपनी भाषा को 'देश भाषा' की संज्ञा दी है। प्रायः सभी हिन्दू कवियों ने अपनी भाषा-बोतन के लिए ऐसे या ऐसे ही अन्य प्रयोग किए हैं। 'देश भाषा' प्राकृत भाषा या भाषा के ऐसे उललेख, मुसलमान कवियों द्वारा लिखी गई की खड़ी बोली रचनाओं के
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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