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________________ प्रस्तावना कृतियाँ स्वतन्त्र गद्य काव्यों के रूप में सामने पाती है। पुण्यास्रव कथाकोश के अतिरिक्त मादिपुराण, पद्मपुराण एवं हरिवंश पुरागा जैसी कृतियों को भाषा एवं शैली की दृष्टि से कवि ने उन्हें सर्वथा मौलिकता प्रदान की और जो अनुवाद में सूना सुना सा नजर प्राता था उसे अपनी कृतियों में जड़ से उखाड़ फेंका। यही कारण हैं कि उनका पद्मपुराण एवं हरिवशपुराणा का स्वाध्याय गत २०० वर्षों में जिलना हुमा उतना स्वाध्याय संभवतः अन्य किसी रचना का नहीं हुधा होगा । बल्कि महाकवि के पूर्व तक हिन्दी गद्य रचनापों के प्रति पाठकों का जो उपेक्षा भाव था उसे भी दौलत राम ने अपनी रचनात्रों के माध्यम से दूर किया। इसके अतिरिक्त प्रव तक भाषा टीका लिखने की जो परम्परा विद्यमान थी वह भी धीरे धीरे समाप्त हो गयी और विद्वान हिन्धों गड में लिखने की प्रोर भुकने लगे। २०वीं शताब्दी में हिन्दी गद्य या उपन्यास, कहानी एवं निबन्धों के रूप में जो विकास हुमा उस में भी वही भावना काम करतो है जिस भावना से दौलतराम को अपनी कृति का माफम हिन्दी गद्य को स्वीकार किया था । 'खेतनि विष नाना प्रकार के खेत हरे हो रहे है भर सरोवरनि में कमल फूल रहे हैं पर वृक्ष पहारमणीक दीखे हैं यह शैली प्राव से २०० वर्ष से भी अधिक समय की है। गत दो सौ वर्ष में हिन्दी भाषा के प्रयोग में कितना परिवर्तन प्राया है इससे हम परिचित हैं लेकिन संवत १८२३ में भी हिन्दी गद्य में लिखने वाले इतने उच्चस्तरीय विद्वान थे यह देखकर हमें भाश्चर्य होता है । और उनकी विद्वत्ता एवं लिखने की शैली को देखकर के ही मालवा समाज ने हरिवंशपुराण को हिन्दी गद्य में निर्माण करने की और प्रार्थना करवायी। "उनकी वार्ता पुर ग्रामादि विषं प्रसिद्ध भई मो दमन भूपति बलदेव के समाचार सुन कर संका मान नाना प्रकार के प्रायुध घर उपसर्ग करने वे पाये। तब सिद्धार्थ देव उनको ऐसी माया दिखाई वे जहां देखे तहां दोखे।" उपयुक्त उदाहरण हरिवंशपुराण का है। कवि ने इस पुराण में बड़े बड़े वाक्य लिखे हैं क्रियाओं का प्रयोग कम से कम किया है और उसके प्रयोग से स्थान पर प्रक्रिया पदों का प्रयोग करके बाक्य को लम्बा करता गया है । लेकिन फिर भी भाषा एवं शैली के प्राकर्षण में कोई कमी नहीं पाती है और पाठक उसे सहज भाव से पढ़ता है। हिन्दी गद्य के विकास की दृष्टि से दौलतराम के इन कृतियों का भयधिक महत्व है इसलिये इनका समीक्षा. स्मक अध्ययन आवश्यक हैं । --
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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