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शृङ्गार परख वर्णन
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सुन्दर वरान विन्या है । वामी पुरुषों को अच्छा बुरा नहीं देखता । बड़े बड़े मृभट भी कातर दशा को प्राप्त हो जाते हैं । वह कामज्वर में उसी तरह जलने लगता है जैसे अग्नि में घी डालने से अग्नि प्रज्वलित हो जाती है। उने अन्न-जल जहर के समान लगने में सौर सपनी ममा ती दलाउसे अच्छी लगती है। वह कभी मुधित हो जाता है और कभी उसका शरीर शोक संतप्त हो जाता है । जसका मन एक क्षण भी स्थिर नहीं रहता 1 वह अपने अंगों को मरोड़ता रहता है। कभी वह जंभाई लेता है तो कभी उसे नृत्य एवं संगीत सुनने की इच्छा होती है।' बारह मासा वर्णन
अन्य जैन कवियों के समान ब्रह्म रायमल्ल ने भी राजुल के शब्दों में बारह मासा का वर्णन किया है । कवि का यह वर्णन काफी स्वाभाविक एवं प्राकृतिक काम दशा के अनुकूल है 1 उसका बारह मासा श्रावण मास से प्रारम्भ होता है । श्रावण मास-श्रावण मास में घनघोर वर्षा होती है। मेघों की तीव्र गर्जना होनी रहती है । मोर भी नाचने लगता है। ऐसी स्थिति में राजुल नेमिनाथ से कहनी है
पवन कुमार भणौ तं क्षणी, सूनि हो मन्त्री बचह हम भयो । बकई एक हि रात वियोग, भरै विलाप अधिक दुख सोग ।।५०॥ कही अंजना किम जीवसी, छांर्ड भये वर्ष द्वादगी ।
यति अपराध भयौ है मोहि, मुझ समान मूरिख नही कोई ॥५१॥ १ जब कामी ने व्याप काम, जुगति प्रजुगति न जाणं ठाम । चित उपज बहुत सरीर, कातर होइ सुभट बरवीर ।।३।। कामणि रूप सुणे जे नाम, कामी चित्त रहैं नवि ठाम | काम बार पीडै तं क्षणा, सास उसास लेइ अति घणा || Ut काम उवर न्याप तसु, एह, वैस्वानर जिम दाझै देह । घड़ी एक चित्त घिर नहि देह, मो. अंग जंभाडी लेइ ।।५।। जन्न कामी की होइ अवाज. विष सम छोडे पाणी नाज । जाके शरीर काम को वास, कामगि कथा सुहावै तास ।।६।। कामनि कारजि हि लगे अंग, गीत नत्य भानै तिण अंग - काम बाण जौ हणे शरीर, मुर्छा ग्राइ पई घर बीर ।।७।। च्याप काम करै नर पाप, उपज देह मोग संता" । दुख भुजे रोवै नर जाम, जहि प्राइ कप काम ॥८॥