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________________ (ix) पर मिश्र बन्धु विनोद के उक्त कधि क्या कोई तीसरे ब्रह्म रायमल्ल है ? संभव हो सकता है कि मिथ बन्धु विनोद के टिप्पणीकार ने 'सकलकीति' मुनिवर गुणवंत को 'सकलचन्द्र' मान लिया हो। 'भविष्यदत्त चरित्र' इस संग्रह में दी गयी भविष्यदत्त चोपई ही हो सकती है । दुसरा ग्रन्थ 'सीतापरित्र' भी इस संग्रह की 'हनुमन्त कथा' का ही दूसरा नाम हो सकता है ? संवत् १६६४ रचनाकाल के लिए या तो गलत पढ़ लिया गया है या सम्भव है कि यह लिपिकाल ही हो ? फिन्तु यहां कठिनाई यह है कि मिश्रवन्धु विनोद के उक्त उल्लेख के प्रामाणिक स्रोत का पता लगाना सम्भव नहीं, मत: यही कह सकते है कि 'डा० कासलीवाल ने अपनी भूमिका में जितना कुछ लिखा है वह प्रामाणिक है, और इस अन्ध के द्वारा दो हिन्दी के महत्वपूर्ण पौर स्वल्पज्ञात कवियों का उद्घाटन हो रहा है। ब्रह्म रायमल्ल महाकवि केशवदास के- समकालिक हैं, और इनके काव्य में जहां-तहां केशवदास से साम्य साम गिरता है। ब्रह्म रायमल्ल का 'पोदनपुर नगर वर्णन' का एक उदाहरण यहां देना उपयुक्त होगा : मारण नाम न सुनजे जहां खेलत सारि मारि जे तहाँ हाथ पाई नवि छेद कान सुभद्र खाय से छेदें पान । बंधन नास फूल बंधेर बघन कोई किसहा न देइ । कामणि नैण काजल होइ हिपड़े मनुस न कालो होइ । सपणं परायो छिद्र जु महे । कोई क्रिसका छिद्र न कहे। गुंगो कोई न दीस सुनि । पर अपवाद रहे धरि मौन चोरी पोर न दीसे जहां घड़ी नीर ने चोरों जहां दंड नाम को किस ही न लेई मनवचकाइ मुनि दड़ देइ ।। और ऐसे ही आसंकारिक शिल्प में केशव ने लिखा था
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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