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सुदर्शन रास
उसने तत्काल सेठ को सूली लगाने का प्रादेश दिया । सेठारणी हाहाकार विलाप करती हुई सेठ के पास पहुंची तो उसने पूर्व जन्म के किये हये पापों का फल बतला कर उसे सान्त्वना देना चाहा । सेठ को शूली पर चढ़ाने के लिये ले जाया गया और ज्योंही. उसे शूली पर चढ़ाया वह शूली सिंहासन बन गयी । यह देख कर सेवक वहां से भागे और जाकर राजा से निवेदन किया। राजा ने उस पर विश्वास नहीं किया और तत्काल सेना लेकर वहां पहचा। देवताओं ने राजा को मार भगाया। राजा नंगे पांव सेठ के पास गया और विनयपूर्वक अपने अपराध के लिये क्षमा मांगने लगा। भन्त में सेठ ने देवताओं से राजा को क्यों मारते हो ऐसा कहा । देवों ने सेठ के चरित्र की बहुन प्रशंसा की और उसका खूब सम्मान करके स्वर्ग लोक चले गये ।
___ ने जद : वृतान्त न हो इसने सत्ता कर लिया तथा पंडिता पाडलीपुर चली गयी और वहां वैश्या के पास रहने लगी । सेठ सुदर्शन घर पाकर सुख से रह्ने लगा तथा अपना जीवन धर्म कार्यमें व्यतीत करने लगा । एक दिन वहां मुनिराज पाये तथा जब सेठ ने शूली वाली घटना की बात जाननी चाही तो मुनिराज ने विस्तार पूर्वक पूर्व भव की बातों का वर्णन किया । अन्त में सेठ ने मुनि दीक्षा ली और अनेक उपसर्गों को सहने के पश्चात् कंवल्य प्राप्त करके अन्त में निर्धारण प्राप्त किया।
इस प्रकार २०१ पद्यों में निर्मित सुदर्शन राम कवि की कथा प्रधान रचना है इसमें कथा का बाहुल्य है । सभी पद्य एक ही छन्द में लिखे हुये हैं तथा उनमें कोई नवीनता नहीं है । कवि ने अपना परिचय देते हुये अपने पापको मूलसंघ के मुनि अनन्तकीति का शिष्य लिखा है। ।
रास का रचना काल संवत् १६२६ वैशाख शुक्ला सप्तमी है। उस समय अकबर का शासन था जो सभी छह दर्शनों का सम्मान करता था । रचना स्थान धौलहर नगर लिखा है जो सम्भवतः घौलपुर का नाम हो । चौलपुर स्वर्ग के समान था वहां सभी ३६ जातियां थी जो प्रतिदिन जिन पूजा करती थी। १ ग्रहो श्री मूलसंघ मुनि प्रगटौ गी लोइ, अनंतकौति चारणो सह कोई तास तणो सिपि माणज्यो, अहो राइमल्स ब्रह्म ममि भयो उछाह ।
बुद्धि करि हीण आगे नहीं, प्रहो क्णयो रास सवर्शन साह ||१९॥ २ अड़ो सोलहस गुणतीसै वैसाखि, सात जी राति उजाल जो पालि।
साहि अकबर राजिया, अहो भोग राज अति इन्द्र समान ।
चोर लवांड राखं नहीं, अहो छह वशंग को राखं श्री मान ||१९६।। ३ अहो धोलहर न बन देहुरा थान, वेबपुर सोभै जो सर्ग समान ।
पौणि छत्तीस लीला कर, अहो कर पूजा नित जपं अरहत ।।२०।।