________________
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
कुछ दिनों पश्चात् बसन्त ऋतु पायी। चारों ओर पुष्प महकने लगे । राजा, रानी, सेठ सुदर्शन एवं उसकी पत्नी एवं पुत्र तथा कपिल ब्राह्माणी सभी वन विहार के लिये चले । जब रानी ने सेठ सुदर्शन को देखा तो वह उसकी अपूर्व सुन्दरता से प्रभावित हो गयी और उगके बारे में जानकारी चाही। रानी के पास ही कपिला ब्राह्मणी थी । पहिले तो उसने सेठ को नपुसक बतलाया और रानी को कहा कि यदि वह सेक को अपने जाल में फांस सके तब उसके चातुर्य को समझे ।
सनी ने पर प्राकार अपनी जान को मात पाडत जी से कही । लेकिन पंडितजी ने रानी की बात को मानने के बजाय उसे शील महात्म्य पर खूब उपदेश दिया । लेकिन रानी ने कहा कि उसने कपिला आम्हणी को वचन दे दिया है कि वह सुदर्शन को अपने वश में कर लेगी नहीं तो कटारी खाकर मर जावेगी । वमन का निर्वाह करना प्राचीन परम्परा रही है। अन्त में अनेक उपाय सोचे गये । अष्टान्हिका में सेठ सुदर्शन घमशान में जाकर ध्यान लगाता था। यह बात जब रानी की दासी को मालुम हुमा तो उसने महल के रक्षकों को भुलावे में डालने के लिये मानवाकृति के आटे के पुतले को प्रतिदिन लाने ले जाने लगी । और अन्त में पाठवें दिन स्वयं ध्यानस्थ सेठ को रानी के महल में लाकर पलंग पर डाल दिया 1
अहो सेठि सुदर्शन रह्यो धरि ध्यान, मनु कियो वच्च का यंभ समान । आयोजी भाप समीषियो, अहो मन वचन कायाजी लियो सन्यास । मो उपसगं ये बरी, अहो हावि भोजन करौ वन में जी वास ।।१२२।।
रानी ने गेठ के साथ संभोग करने की कितनी ही बालें चली। विविध हाव भाव बतलाये । लेकिन वह सेठ को वश में नहीं कर सकी । अन्त में निराश होकर सेठ को बाहर निकाल दिया और स्वयं कपडे फाड कर अपने प्राण खरोच कर चिल्लाने लगी--
अहो रच्यो जी प्रपंच सह फाचोजी चौर, काचुयो तोडि विसरि सरीर । बंधु बाहर कर पापणी, अहो सेठि पापी मुझ तोडियो अंग | राति उपसर्ग किया घणा, अहो राउ स्यु कही जिम कर सिर भंग 1
नगर में रानी की बात नांधी के समान फैल गयी। चारों पोर हाहाकार होने लगा तथा किसी ने भी सेठ सुदर्शन के चरित्र पर शंका प्रकट नहीं की ।
महो धावक क्रिया जी पाल हो सार, वान पूजा करें पर उपकार नग्र नर नारि ने सीख दे अहो, पंडित जाणो जी जैन पुराए । कर्म कुकर्म सो किम करे, अहो सील न छोड़े हो शाहि पराण ।
राजा ने जब रानी की बात सुनी तो उसके क्रोध का पार नहीं रहा और