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________________ ३४ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल प्रारम्भ में 'हो' शब्द का प्रयोग किया गया है जो सम्भवतः अपने पाठकों के ध्यान को एकाग्र रखने के लिये अथवा वर्ण्य विषय पर जोर देने के लिये है। दिखावण (३) परणी (६) बोल्या (१०) चाल्पो (१३) भास्यो (१५) पाइयो (४०) चाल्यो (४१) जैसी क्रिया पदों का प्रयोग हियर्ड (१६) भूवा (२४) किस्न (२५) व्याहु (३७) हरिस्पी (५१) जैसे शुख राजस्थानी शब्दों का प्रयोग करके कवि ने राजस्थानी भाषा के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित किया है। प्रद्य म्नरास का अपना ही छंद है। सारे काव्य में एक ही रास छन्द का प्रयोग हुप्रा है । प्रत्येक छन्द में ६ पद है जिनमें २० से १८, १७, १७ तथा १६, १६ मात्राए' हैं। कवि ने इसे कड़वा छन्द लिखा हैं । कवि ने पुराणों में वरिणत कथा के प्राधार पर ही रास काव्य की रचना की है । अपनी ओर से न तो कथा में कोई परिवर्तन किया है और न किसी नये कथानक को स्थान दिया है । हां कथा का विस्तार एवं संक्षिप्तीकरण अपने काव्य के छन्दों की सीमित संख्या के अनुसार किया है। नेमिनाय के समवसरण में केवल द्वारिका दहन की चर्चा ही होती है उसमें जैन सिद्धांतों का प्रतिपादन जो जन कवियों की अपनी शैली रही है कवि ने उसे इस काव्य में स्थान नहीं दिया है। सामाजिक तत्वों की दृष्टि से रास काव्य में कोई त्रियोष वर्णन तो नहीं पाया किन्तु प्रद्य म्न के विवाह के समय लग्न लिखना, चौरी मण्डप बनाना, वधावा गीत गाना, वर कन्या के तेल चढाना, ब्राम्हणों द्वारा वेद मन्त्र का पाठ कराना आदि कुछ वर्णन तात्कालीन समाज की अोर संकेत है । रास सुखांत काव्य है । प्रधम्न राज्य सम्पदा का सुख भोगने के पश्चात् गृह स्याग कर देते हैं और अन्त में घोर तपस्या के पश्चात् निर्वाण प्राप्त करते हैं । कवि ने इसे गढ़ हरसोर में संवत् १६२८ (सन् १५७१) में पूर्ण किया था । उस दिन भादया शुक्ला वितीया बुधवार था । हरसोर में उस समय श्रावकों की अच्छी बस्ती थी। वहां भव्य जिन मन्दिर थे तथा श्रावक गण देव शास्त्र एवं मुरू का सम्मान करते थे । १ हो सोलहसी अदृषीस वीचारो, हो भाववा सुचि कुसिया पुषवारो । गढ हरसौर महा भसी जी, हो तिमै भलो जिणेसुर यानो । भोवत लोग बस भत्ता जी, हो देव शास्त्र गुफ राख्न मानो 1|१९४।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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