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________________ (vi) थे इसलिये उन्होंने अपने कामों को कितनी ही राम एवं ढाली में प्रस्तुत किया है। वास्तव में उनके काव्य मेप काव्य बन गये हैं जिन्हें भाव विभोर होकर श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है । ब्रह्म रायमल्ल ने अपना जीयन ग्रन्थ लिपिक के रूप में प्रारम्भ किया था। सौभाग्य से उनके स्वयं द्वारा लिपिबद्ध गुटका अयपुर के ही पाश्र्वनाथ दि. जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध है जिसका एक चित्र पाठकों के प्रवलोकनार्थ दिया गया है । इसी तरह यद्यपि स्वयं भट्टारक निमुवनकीति द्वारा लिपिबद्ध पाण्डुलिपि प्राप्त नहीं हो सकी है लेकिन जिस गुटके में उनके काव्यों का संग्रह है वह भी उन्हीं की परम्परा में होने वाले ब्रह्म सामल द्वारा लिपिबद्ध है। प्रस्तुत भाग के संपादन में जिन तीन अन्य विद्वानों पादरणीय डा. सत्येन्द्र जी, जा. माहेश्वरी जी एव प. अपचन्द : पार्थ का सहयोग मिला है उसके लिये मैं उनका हृदय से प्राभारी हुं । पादरणीय डा. सत्येन्द्र जी के प्रति किन शब्दों में माभार घ्यक्त करू', उन्होंने पुस्तक के सम्बन्ध में 'दो शब्द' लिखने की महती कृपा की है। इस अवसर पर मैं श्रीमान् मा० अनूपचन्द जी जैन दीवान व्यवस्थापक शास्त्र भण्डार पार्श्वनाथ दि. जैन मन्दिर जयपुर एवं श्री प्रेमचन्द जी सौगाणी व्यवस्थापक शास्त्र भण्डार दि. जैन बड़ा तेरहपंथी मन्दिर जयपुर का भी प्राभारी है जिन्होंने कवि की मूल पाण्डुलिपियां उपलब्ध करायो है। श्री प्रकाशचन्द जी बंद का भी आभारी हैं जिन्होंने 'परमहंस चौपई' की प्रति उपलब्ध कराने में सहयोग प्रदान किया है। इनके अतिरिक्त श्री महेशचन्द जी जैन का भी प्राभारी हं जिन्होंने पुस्तक की साज-सज्जा में सहयोग दिया है। डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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