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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
३. ज्येष्ठ जिनवर कला यह कवि की लघु रचना है जिसमें प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव का जीवन चरित्र प्रकित है। प्रथम तीर्थ कर होने के कारण वे सबसे बड़े जिन हैं, इसलिये इस कथा का नाम जेष्ठजिनवर कथा रखा गया है। इसका रचना काल संवत् १६२५ तथा रचना स्थान सांभर (राजस्थान) है। प्रस्तुत कथा का अजमेर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार अजमेर में संपर। समाजमा है ।
४. प्रद्युम्नरास परदवणरास ब्रह्म रायमल्ल की रास संज्ञक कृतियों में महत्वपूर्ण कृति है। राजस्थानी भाषा में निबद्ध इस रास काव्य का रचनाकाल संवत् १६२८ भादवा सुदी २ बुधवार है।' गढ़ हरसोर इसका रचना स्थान है। हरसोर जयपुर राज्य का ही एक ठिकाना था जहां जैन श्रीमन्तों की अच्छी बम्सी थी । जिनमन्दिर था तथा उसमें पूजा बत्त विधान होते रहते थे। कवि ने सम्भवतः संवत् १६२८ का चातुर्मास यहीं ध्यतीत किया था और वहीं श्रावकों के प्राग्रह से इस रास की रचना समाप्त की थी।
प्रद्य म्न की गणना १६९ पुण्य पुरुषों में की गयी है तथा २४ कामदेवों में भी प्रद्य म्न का सम्मानित स्थान है। ये नवें नारायण श्रीकृष्णा जी के पुत्र थे । चरम शरीरी थे । जैन वाड्मय में प्रद्युम्न के चरित्र का महत्वपूर्ण स्थान है । अब तक संस्कृत, अपभ्रंश हिन्दी एवं राजस्थानी में विभिन्न कवियों द्वारा निबद्ध प्रद्युम्न के जीवन पर २५ कृतियां खोज ली गयी हैं। ब्रम्ह रायमल्ल के पूर्व निबद्ध ७ कृतियां मिलती है और प्रस्तुत रास काव्य के रचना के पश्चात् १७ कृतियां और लिखी गयी जिनसे प्रद्युम्न के जीवन की उत्तरोत्तर लोकप्रियता का भान होता है। रास काव्य का मूल्यांकन
प्रद्युम्न रास का प्रारम्भ तीर्थ कर की वन्दना से होता है इसके पश्चात् जिनवारणी तथा फिर निर्ग्रन्थ गुरू को नमस्कार किया गया है । कवि ने फिर अपनी अल्पज्ञता का निम्न पद्य में वर्णन किया है
हो हो मृति अति अपढ प्रयाण, भावमेव जाणों नहीं जी हो घोडी जी बुधि किम करौ बखाण, रास भणी परववरण को जी।
१. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची पंचम भाम-पृष्ठ संख्या १४५
हो सोलहसै अठ्ठवीस विचारो, हो भादवा सुदि द्वितीया बुधवारो। गह हरसोर महाभलौ जी हो तिमै भला जिगोसुर थानी ।
श्रीवंत लोग बस भलाजी, हो देव शास्त्र गुरू राखै मानौ ॥१९४३ २. देखिये-लेखक द्वारा सम्पादित प्रश्च म्न चरित्र की प्रस्तावना, पृ० ४३