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________________ ३१५ कविवर त्रिभुवनकीति एक समुद्र जाल बहू, संचि एक दोष गुण बहू । वंचि एहवी अद्भुत वाणी, खग मुणीए ॥२६।। २६६।। संग्राम जांणी मर मीय, जंब श्रेणिक प्रणमीय । विमान लेईदि सनि लेई चालीए । सहीए ।। ३०।।२७।। जंबुकुमार का प्रस्थान वस्तु-ताम श्रेणिक ताम श्रेणिक कही तिणी बार । भो भो क्षत्रय सज थई जरह जीणसनाह लेइ । यान वाहन सय सज करी चतुरंग सैन्य सहय लेइ । विविध वाजिन वाजता, पाव्या से तेणि ठाम । रमचुल सग जीपवा, श्रेणिक चालि ताम ।।३१।।२७१।। दहा-केत लाग चंदने चया, के तला प्रस्वारोह । सनाह लेई केतला, छोडीनि धरना मोह ।।३२॥२७२।। सेमा वर्ष। पायक आगलि चालीया, सेना सवे चतुरंग । समुद्र सरीखीए पछि, रणस्थानिक नहीं भंग ।।३३।२७३।। संन्य सागर तिहां चालता, जल स्थल एकज होइ । सम विसम पंथा सहू, ते सये सरस्खा जोइ ॥३४॥२७४।। ढोल ददामा दरबड़ी, पण काहल रणतुर । पंच शाबद वाजि घणां, जाणे सायर पूर ॥३५॥२७५।। सैन्य सह तिहां प्रावीउ, विध्याचल उत्तंग । जीव घणा तिहां देखीया, विस्मय पाम्यु मन चंग ।।३६।१२७६।। कपि केकी वाराहनि, हरण रोझ गोमाउ । इस व्याघ्र गज सांवरा, मृग वृष महिष निकाय ॥३७॥२७७।। भिल्ली भिल्लज देखीया, ते प्रायुध सहित अपार । सैन्य साद देखी करी, नासा ते सिणी वार ।।३।।२७८ ।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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