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________________ कविवर त्रिभुवनकाति मावी दई दिशि नाग लोक, श्रेणिक स भूगति सवेरे । नाग तर नि नारि, प्रांण राख्नु ए सुलविरे ।।१६।२२५।। साखी को पि नवकार, 11 केवि दे हरे। सन्यास लेइ केवि, के वि अणमण लेइरे ।।१।१२२६।। जातार द्वारा हाथी को वश में करना सखी दुजर्य जाथी नाम, जबकूमार पाब्यु वली रे । नाग प्रति कुमार द्दष्टि, देइ मननी रली रे ।।१८।।९२७।। युद्ध करि तेह साथ, अंकुस धाय मूकि रही रे । सांग तणा बली चाय, कुंडल धाय चूकि नही रे 1।१६। २२८।। सजी निरमद कर बली नाग, पग देई ऊपरि घड्यु रे । फेरचीनि चिरकाल, मुष्ट प्रहारि सुनई उरे ।।२०।२२६।। जीतु तेवली नाग, जय लक्ष्मी तिही पामी उरे । पुष्प वृष्टि करि देव, ए तलि श्रेणिक मावीउरे ।।२१।।२३।। सखी करीय प्रसमा सार, मनसु स्नेह धरि धण उरे । पुण्यि लाश्च भंडार, पुष्यि घिर घोडा सुणु रे ।।२२।।२३१॥ पूज्यु श्रेणिक राह, अर्धासन देह वली रे। महोछत्र सहित कुमार, नगर माहि पावि रती रे ।।२३।२३२।। सखी नगर नारि तिनी वारि, वृद्धा वि गुरिय रही रे । जोती जेबकुमार, तृपत्ति न पामि ते सही रे ।।२४ ।२३३। सनी इणि पिरि पाव्य प्रावाम. माय बाप स्वजन मिल्यु रे । पूछि क्षेम समाधि, कहु नाग तम्हे भिम कलुरे ॥२५।।२३४॥ सस्वी जिम जिम जीतु नाग. ते ते पिर सधली कही रे । सुखि रहि मंदिर माहि, दिन जाता जाणि नही रे ।। २६।।२३।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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