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जीवन परिचय एवं मूल्यांकन
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पुत्र जन्मोत्सव पर अनेक प्रकार के प्रायोजनों का सम्पन्न होना, उपाध्याय के यहाँ विधार्थियों का प्रध्ययन, सभी तरह की विद्यापों, कला एवं अन्य विद्यामों में पारंगता प्राप्त करना, विवाह के अवसर पर बाओं का बजना, स्त्रियों द्वारा मंगल गीत गाना, नृत्य करना, बन्दीजनों द्वारा गुणानुवाद करना, घोड़े पर चढ़कर विवाह के लिये प्रस्थान करना, दहेज में सोना चांदी, रत्नों के आभषण देना, विवाहोत्सव पर विविध प्रकार के व्यजन तैयार करना, आदि प्रथानों के नाम उल्लेखनीय है । इसके तत्कालीन समाज का कुछ कुछ परिचय प्राप्त किया जा सकता है। नारी को त्यागने के प्रति बंन काव्यों में उत्माह्न वर्धक अंश रहता है । नारी के त्यागने पर मुक्ति मिल सकती है । क्योंकि नारी शोर गृहस्थी का तारात्म्य सम्बन्ध है है । यदि किसी के जीवन में नारी है नो वराम का प्रभाव है । साधु के जीवन में प्रवेश करने के पूर्व नारी का परित्याग नितान्त आवश्यक है इसलिये प्रत्येक जन कवि ने अपने काव्यों में नारी की प्रशंसा के साथ साथ उसकी निन्दा भी उसे संसार परिभ्रमण का कारण मान कर की है । प्रस्तुन काव्य भी इस से अछूता नहीं बचा और यहां भी विभुवनकीति ने नारी के प्रति निम्न विचार प्रस्तुत किये है ---
क्रूड कपटनी कोथली, नारी नीठर जाति । नसकि देगी रूपान, करि पियारी तात ॥१०॥
सीयल रयण नवि तेह गमि, हीय डा सुधरी मोह। रस सूरमि अनेरडी, अन्य बडाधि दोह ॥११॥
दया रहित प्रति लोमणी, धर्म न आणि सार ।
दयामणी दीसि, सही रूठी क्रूर अपार ॥१२॥
नारी के सौन्दर्भ के प्रति अरुचि पैदा करके मानव में वराग्य की भावना उत्पन्न करना ही जन काव्यों का मुख्य उद्देश्य रहा है। काव्यों के रचयिता स्वयं जनाचार्यों एवं सन्तों ने इराको पहले अपने जीवन में उतारा है और वही बात काव्यों में प्रस्तुत की है। जम्बूस्वामी भी अपनी नवविाहित ऐसी पत्तियों का त्याग करते हैं जिनके विवाह की मेंहदी भी नहीं सूनी थी तथा विवाह का कंकण हाथों में ही बंधा था । लेकिन यदि निर्वाण पथ का पथिक बनना है तो इन सबका परित्याग करना पड़ेगा । इसी त्याग के कारण एक 'साधु सम्राट द्वारा पूजित होता हैं इन्द्रों एव देवों द्वारा नाराम्य होता है।