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जोवन परिचय एवं मूल्यांकन
जम्यूकुमार यौवन प्राप्ति के पूर्व ही वैराग्य धारण कर लेता है और अन्त में कंवल्य प्राप्त कर निर्वाण का महापथिक बनला है। उसका अधिकांश जीवन शान्त रस से समाविष्ट रहता है भाषा
रास की भाषा गुजराती प्रभावित राजस्थानी है। क्रिया एवं किया एक क्रियापदों में दोनों एक साथ चलती हैं । क्रिया पदों में प्राप्यु (३३।१६३) घाल्यु (५।१६३) पुछीया (६१६३) पायीमा (१०।१६४) पाम्यु (३६।१७३) पाबीउ १६१६४) जाइ, प्रावि (१५१६४) लीघा दोघां (२०११६५) का प्रयोग काश्य में प्रमुख रूप से हुआ है । वैसे रास की भाषा, अत्यधिक सरल एवं सहज रूप से लिखी हुई है । उसमें कृत्रिमता का प्रभाव है। शब्दो को तोड़ मरोड़ कर प्रयोग करने में कवि को जरा भी रुचि नहीं है ।
छन्द
रास गेय काव्य हैं । सभी छन्द गेम है पौर कवि ने उसे गेय काव्य बनाने का पूरा प्रयास किया है । रास के मुख्य छन्द, हा, चुपई, राग, गुडी ढाल साहेलीनी, बाल यशोधरनी, ढाल मियामोनी, ढाल मालंजडानी डाल सखीनी, ढाल सहीनी, राग प्रासाउरी, राग सन्यासो, राग विराडी, हाल दमयंतीनी, ढाल मोहपराजतनी, राग सामेरी, ढाल भवदेवनी, ढाल बियाउलानी, द्वाल हिंगोलानी राग देशाल, ढाल आणंदानी, हाल रणजाराती, हाल दशमी यशोधरनी प्रादि विविध ढालों, रागों का प्रयोग किया गया हैं। इन रागों से प्रस्तुत रास पूर्णतः मेय काव्य बन गया है । सामाजिकता
प्रस्तुत रास में तत्कालीन सामाजिक प्रथानों का भी वर्णन उपलब्ध होता है।
नेम निर्वाण जिहां पाम्या, राजीमतीइ तप ग्रही। तिहो आवी जिणवर पाय प्रणमी, मानव भव सफल नहीं ।।२।। प्रबंदाचल मेवाड देस लाइ मरहठ पामीउ । चित्रकोट गुजराति देस मालव सिधु देशि कामीउ । काशमीर करहाट देस विराट हु' भ्रम्य प्रति घणउ । परिभ्रमण कीधी द्रव्य कारणी पार न पाम्यु तेह तणु ।। ३ ।।