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________________ २७४ कविवर त्रिभुवनकीति लौटा दी । इससे वह गोप बड़ा प्रसत्रहमा और उसने अपनी लड़की के साथ जीवन्धर का विवाह कर दिया। इसके पश्चाद बीवन्धर ने सुघोष वीणा बजा कर गंधर्षदता से विवाह किया । इसके पश्चात् उसने मरते हुए स्वान को णमोकार मंत्र सुनाया जिससे मरने के बाद वह यक्ष हुमा । उन्मत्त हाथी को वश में करने के पश्चात् उसे सुरमंजरी जैसी सुन्दर कन्या प्राप्त हुई। सहस्त्रकूट चैत्यालय के कपाट खोसकर राजकन्या से विवाह किया। पद्मावती का विष उतार कर उसका वरण किया । एवं प्राधा राज्य मी प्राप्त किया। इसके पश्चात् उसने मोर भी कितनी ही सुन्दर कन्यामों से विवाह किया और अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। अपने पिता के शत्रु काष्टांगार को मार दिया । अपना खोया हा राज्य प्राप्त कर एक दीर्घ समय तक राज्य का सुख भोगा । अन्त में वैराग्य धारण करके निर्वाण प्राप्त किया। काव्य कला जीवन्धर चरित एक प्रबन्ध काव्य है । इसका नामक जीवन्धर है लेकिन प्रतिमायक एक नहीं कई हैं जो पाते है और चले जाते हैं। प्रस्तुत रास सर्गों में विभक्त नहीं है किन्तु जब कथा को मोड देना पड़ता है तो "एह कथा इहो रही" कह दिया जाता है। इससे पाठकों का घोड़ा ध्यान बट जाता है। ___ रास के सभी वर्णन अच्छे हैं । कवि ने अपने काव्य को सरस बनाने के लिये कभी प्रकृति का, कभी मानव का, और कभी वन्य प्रदेशों का सहारा लिया है। जीवन्धर की माता विजया का जब कवि सौन्दर्य का वर्णन करने लगता है तो वह पूर्ण धंगारी कवि बन जाता है मस्तक वेणी सोभतुए, जाण सखी मार। सिंथह सिंदूर पूरतीए, कंठा खडा हार । काने कुंडल झलकाए, फिडि कटि मेस्खल । चरणे नेउर पिहिरतीए, दीसंता निर्मल । रंभास्तंभ सरी खडीए, विन्यइ छिबंध । हंसगति चालइ सदा ए, मध्यइ जसी संघ ॥४४॥ तृष्णा का कभी अन्त नहीं । समुद का जल सूख सकता है लेकिन तृष्णा का पन्त फिर भी नहीं हो सकता । इसी को कवि ने कितने ही उदाहरण देकर समझाया है--
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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