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________________ कविवर त्रिभुवनकीर्ति जीवन परिचय एवं मूल्यांकन विक्रम की १७वीं शताब्दी के प्रथम पाद में होने वाले हिन्दी जैन कवियों में निमुवन कीति दूसरे कवि हैं जिनका परिचय प्रस्तुत भाग में दिया जा रहा है। सत्रहवीं शताब्दी हिन्दी के बीसों जैन कवि हुए हैं जिन्होंने हिन्दी में काव्य रचना करके उसके प्रचार प्रसार में सर्वाधिक योग दिया। बास्तब में इस शताब्दी के जैन कवि भी प्राकृत, संस्कृत एवं प्रप्रभ्रण में काव्य रचना बन्द करके हिन्दी की ओर भापित हो रहे थे। यही कारण में ए. में जाने काधि हुये जिनका नामोस्लेख भी हिन्दी के इतिहास में नहीं हो सका है। उनके विस्तृत परिचय का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता । त्रिभुवनकीर्ति भी ऐसे ही एक अजात कवि हैं जिनके सम्बन्ध में क्या हिन्दी जगत् और क्या जैन जगद दोनों ही अपरिचित से हैं। त्रिभुवनकीलि जन परम्परा के सन्त कवि थे। लेकिन उनके जन्म, मातापिता, अध्ययन एवं दीक्षा के बारे में कोई परिचय उपलब्ध नहीं होता। वैसे जैन सन्त का जीवन अपनाने के पश्चात् एक श्रावक को दूसरा ही जन्म मिलता है। वह अपने प्रथम जीबन को पूर्णतः भुला देता है तथा माता-पिता, सम्बन्धी प्रादि उसके पराये बन जाते हैं । यही नहीं उसका नाम भी परिवर्तित हो जाता है। उसका उद्देश्य केवल आत्मचिंतन मात्र रह जाता है । साहित्य संरचना भी गौण हो जाती है। यही कारण है कि जैनाचार्यो, भट्टारकों एवं अन्य सन्त कवियों का हमें विशेष परियम नहीं मिलता । त्रिभुवनकीर्ति भी ऐसे ही सन्त कवि हैं जिनकी गृहस्थावस्था के सम्बन्ध में हमें भभी तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है। विभुवनकोति भट्टारकीय परम्परा के रामसेनान्वय भट्टारक उदयसेन के शिष्य थे। इसी परम्परा में भट्टारक सोमकीति, भट्टारक विजयसेन, भट्टारक कमलकीर्ति एवं भट्टारक यश कीति जैसे भट्टारक हुए थे जिनका उल्लेख स्वय त्रिमुधनकीति ने अपनी कृतियों में किया है।' १. नंदियह गच्छ मझार, रायसेनान्वयि हुया 1 श्रीसोमकीति विषयसेन, कमलकीरति पशकीरति हवस। जीपंधर रास ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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