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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल क्योंकि जिस कवि ने पहिले ३१ वर्षों में १५ रचनाएं निर्मित की हो वह पागे ३१ वर्षों तक चुपचाप बैठा रहे यह संभव प्रतीत नहीं होता । जीवन परिचय या रागमाल के शामिल होना कोई हनिव- नहीं मिलता। कवि ने किस अवस्था में साधु जीवन स्वीकार किया इसके बारे में भी हमें जानकारी नहीं मिलती लेकिन ऐसा मालम पड़ता है कि कवि १०-१२ वर्ष की अवस्था में ही भट्टारकों अथवा उनके शिष्य प्रशिष्यों के निर्देशन में चले गये। मुनि अनन्तकीर्ति को जब बावि की व्युत्पन्नमति एवं शास्त्रों के उच्च अध्ययन की नि का पता चला तो उन्होंने इन्हें अपना शिष्य बना लिया और अपने पाम ही रख कर इन्हें प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी का अध्ययन कराने लगे । सामान्य अध्ययन के पश्चात् कवि को शास्त्रों का अध्ययन कराया गया और ऐसे योग्य शिष्य को पाकर वे स्वयं गौरवान्वित हो गये। मुनि अनन्तकीति भट्टारक रत्नकीर्ति के पट्टधर शिष्य थे । भट्टारक रत्लकीति नागौर गादी के प्रथम भद्रारकों में से हैं जो भट्रारक जिनचन्द्र के पश्चात् हुए थे । यदि मुनि अनन्तफौति इन्हीं भट्टारक जी के शिष्य थे तब तो ब्रह्म रायमल्ल का सम्बन्ध नागौर मादी से होना चाहिये। कवि ने ज्येष्ठजिनवर व्रत कथा को संवत् १६२५ में सांभर में समाप्त किया था । ३ लेकिन कवि संघ में नहीं रह कर स्वतन्त्र रूप से ही विहार करते रहे, यह निश्चित है। उक्त सब लथ्यों के आधार पर कवि का जन्म संवत् १५८० के प्रास-पास होना चाहिये । यदि १५ वर्ष की अवस्था में भी इनका भट्टारकों से सम्पर्क मान लिया जावे तो इन्हें ग्रन्थों के गम्भीर अध्ययन में कम से कम १० वर्ष तो लग ही गये होंगे । २५ वर्ष की अवस्था में ये एक अच्छे विद्वान् की श्रेणी में आ गये । प्रारम्भ में इनको प्राचीन हस्तलिखित अन्यों के पढ़ने एवं लिपि करने का काम दिया गया और यह कार्य ब्रह्म रायमल्ल बिना संकोच के तमा विद्वत्तापूर्ण तरीके से करने लगे । संवत् १६१३ में कवि द्वारा लिखा हुणा एक गुटका उपलब्ध हुआ है जिससे भी मालूम पड़ता है कि कवि को सर्वप्रथम अन्यों के लेखन का कार्य दिया गया था। इस गुटके के कुछ प्रमुख पाठ निम्न प्रकार हैं -..--.- - 13. मूलसंघ भव तारण हार, सारद गल गरयो संसार । रत्नकीति मुनि अधिक सुजाण, तास पाटिमुनि गृह निधान ।।७१।। अनन्तकोति मुनि प्रगट्य नाम, कीत्ति अनन्त विम्तरी ताम | मेघ ब्रूद जे जाइ न गिनी, तास मुनि गुग जाइ न भरणी ।।७।। तास शिष्य जिम्ररणा लीन, ब्रह्म रायमल मति को हीन । हण कथा को क्रियो प्रकास, उत्तम क्रिया मुणीश्वर दास ||७३।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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