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प्रद्युम्न रास
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हो घर न गमन कर हरि बालो, हो गयौ जहां थी कंचणमाली । चरण मात का ढोकिया जी, हो हमिस्यौ करिज्ये खिमा पसाउ । हम बालक तुम्ह पोषिया जी, हो हमने चलण द्वारिका भाउ ।।३२७।। हो नमसकार राजा ने कीयो, हो मान बहुत बह लौ दीयो । हम बालक था तुम्ह तणाजी, हो हम द्वारिका चलण को भाउ । भला प्रसाद सु तुम्ह तणा जी, ही पूर्व स्नेह तो मत राऊ ।।१२।। हो रचौ विमाण मुनि बहु मणि जडियो, हो तोड मयण भूमि गिरि पडियो । बहुडि रच्यो तिहि तोडियो जी, हो नारद भण न करहु उपा ।
बिलंब करण बेला नहीं जी, हो बरी तुम्हारी भान विबहो ।।१२६।। विमान पर चढकर द्वारिका के लिये प्रस्थान
हो रच्यो विमाण महामणि जडियो, हो नारद सहित मयण चदि पलिये। नमसकार भवधारि ज्यो जी, हो बढि विमान गनि असमानो। नम देस सागर नदी जी, हो परचत दीप महागढ़ थानो ॥१०॥
हो आगे करो देखि बरातो, इह नरात कोणे तगी जी। हो एक भणं दरोधन जानो, नम्र द्वारिका जाईसी जी । हो दधिमाला ने याहै भानो, रास भणी परक्ष्मण कोसजी ।।१३।।
प्रद्युम्न द्वारा कौतुक करना
हो भील रूप करि वाढी प्रागं, हो पौकी दाण हमारा लागे । इह चौकी भीला तणी जी, हो करो लोग भणं करि हासी । कोण बात घाणकि कही जी, हो इह तो जी जान हरी के जासी ।।१३।।
हो हरि को एक द्वारिका गांउ, हो हम घाणक बन खंड का राज ।
सो थे हम राजई जी, हो जानी बोल कायौ लागे । साचा वचन तुम्ह भाखि ज्यो जी, हो दमडी एक अधिक मत मांगी ।१३३।
हो टाउँ वस्त भली होई सारो, हो सो स्यां इह लाग हमारो । तब तुम्ह में पहचाई स्यां जी, हो जानी बोल्या करि बह रीसो। भली बस्त इह लाहिली जी, हो कहने जी किस्न पुत्र तिया लेस्यौ । १३४.