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________________ जीवन होकर सामने आयी और इस दृष्टि से भट्टारक शुभचन्द्र पाण्डे राजमल्ल भट्टारक वीरचन्द्र, सुमतिकीर्ति, ब्रह्म विद्याभूषण, ब्रह्म रायमल्ल, उपाध्याय साघुकीर्ति भीखमकवि, कनकसोम, वाचक मालदेव, नवरंग, कुशललाभ, हरिभूपण, सकलभूषण आदि के नाम उल्लेखनीय है । इन कवियों ने रास, फागु, बेनि, चौपाई एवं पदों के माध्यम से हिन्दी साहित्य की महनी रोवा की है। इन कवियों में से हम सर्वप्रथम ब्रह्म रायमन्ड का परिचय उपस्थित कर रहे हैं क्योंकि संवत् १६०१ मे १६४० तक की अवधि में ब्रह्म रायमल्ल हिन्दी के प्रतिनिधि कवि रहे हैं । ब्रह्म रायमल्ल हमारे आलोच्य कवि अह्म रायमल्ल हिन्दी के इसी स्वरसंयुग के प्रतिनिधि कवि थे । तत्कालीन जनभावनाओं का समादर करके कवि ने अपनी रचनाएँ लिखी और उन्हें मुक्त रूप से स्वाध्याय प्रेमियों को समर्पित किया । कवि ने अपने काव्यों को जन-जन के काव्य बनाने का प्रयास किया और लोक प्रचलित शैली में लिखकर एक बहुत बड़ी कभी की पूर्ति की । ब्रह्म रायमल्ल की रचनाएँ इतनी अधिक लोकप्रिय रही कि राजस्थान के अधिकांश ग्रन्थालयों में वे आज भी अच्छी संख्या में मिलती है । जैन समाज में ब्रह्म रायमल्ल सदैव बहुचर्चित कवि रहे और उनकी कृतियों का स्वाध्याय बड़ी रुचिपूर्वक किया जाता रहा। ब्रह्म रायमल की अधिकांश रचनाएँ राससंज्ञक रचनाएँ हैं जिनमें अधिकतर कथापरक हैं । कवि ने श्रीपाल, सुदर्शन भविष्यदत्त, हनुमान, नेमिनाथ जैसे महापुरुषों के जीवन पर प्रख्यान परक रचनाएँ निवद्ध करके तत्कालीन समाज को एक नयी दिशा प्रदान करें तथा उन महापुरुषों के अनुकुल अपने जीवन निर्माण को प्रोत्साहित किया, साथ ही में तीर्थंकरों के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति भावना को पुनर्जीवित किया । यद्यपि महाकवि ने सुरदास एवं कबीर जैसे पद नहीं लिखे और न निर्गुण एवं सगुण जैसी भक्ति धारा में बहे। उन्होंने तो अपनी रचनाओं के माध्यम से यही सिद्ध करने का प्रयास किया कि तीर्थंकरों की पूजा, भक्ति एवं स्तवन में अपार पुण्य की प्राप्ति होती है तथा दुष्कर्मों का नाश होता है। श्रीपाल, सुदर्शन, प्रद्य ुम्न, भविष्यदत्त, हनुमान जैसे महापुरुषों का जीवन तीर्थकरों की भक्ति एवं श्रद्धा से उपार्जित पुष्प की खुली पुस्तकें हैं। उनका जीवन आगे आने वाली सन्तति के लिये प्रेरणा स्रोत है । यही कारण है कि इन महापुरुषों के जीवन को ब्रह्म रायमल्ल के पूर्ववर्ती एवं उत्तरवर्ती सभी कवियों ने अपने-अपने काव्यों में सर्वाधिक स्थान दिया है। 5. ७ भाव भगति जिम् दीया हो, करि स्नान पहरे शुभ चीर । जिरा चरण पूजा करी हो, भारो हाथ लई भरि नीर ॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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