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________________ २३० महाकवि ब्रह्म रायमल्ल हो क्षमा तप मन हरपो भगे, सुभ साता तहि तुम न दियो । सिरीपाल स्यौं विनवे, हो पुष पुण्य थे सुरगति होइ । किति इक राज विभूतिया, हो मुक्ति धर्म थे पहुंचे लोई ।।२३३।। सम्यकत्व की महिमा हो समकित के बल सुर घरणेद, समकित कंबल उपजे इंद्र । चक्रवति बल भोगवं, हो समकित केवल उपजे रिधि ! जीव सदा सुख भोगवं, हो समिकित बलि मरवारथ सिद्धि ।।२३।। हो समकित सुध ब्रत पालेइ, ताको मुकति तिया परणेइ । सुरपति किंकर सारिखा, हो दोष पठारा रहित सु देव । सति वचन जिनवर तणा, हो गुर निरगंथ सु जाणी एक ॥२३५।। हो समिकिन सहित पुत्र तुम प्राथि, इह विभूति पाई तुम मायि । घणी अचंभी को नही, हो सुण्या वचन माता का सार । मन मैं सुख पायो घणो, हो नमसकार करि बारंबार ।।२३६।। उज्जयिनो के राजा द्वारा श्रीपाल को पराधीनता स्वीकार करना हो पठयो दुत सूसर के पासि, छोष्ठि उजेणी जीव ले न्हासि । वेगि भाइ चरणा पडी, हो तल बेट्टणी कंवल बंधि। तिण पूलो दातां गहो, हो पाउ धालि कुहाडी कधि ।। १३७॥ हो सुभ बचन सुणि चाल्यो दूत, पंहतो राजा पामि तुरतु । नमसकार करि बोलियो, हो बंध कूहाडी कबल प्रोति । वेगि बालि सेवा करो, हो के तू भाजि उजेणी छोडि ॥२३८।। हो वचन सुण्या राजा पर जल्यो, जाणिकि वैसादर धित ढल्यो । अहंकार मरि बोलियो, हो स्वामी तेरो कोण गुटेक । बड़ी बात मुख थे कहे, हो मुझको पतक्षो जाइ क्षण क ।।२३६।। हो दूत राउस्यो विनती कर, इसौ के गर्व मत हियैह घर । प्रहंकार नीको नहीं. हो अहंकार थे रावण गयो । लखमण राम निपातियो, हो लंका राज भभीषण दियो ।।२४०।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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