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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल हो सिरीपाल जिणवर समदेव, नीर भुजह बलि पाछो दे । संक भ मान चित में, हो सुभट जाई सागर में चल्यो । काठ एक पान पडिड, हो जाणिक मित्र पूर्विलो मिल्यौ ।।१५३॥ हो पौड काठ बेष्टो बरबीर, जस कलोल उचलं महीर । पंच परम गुरु मुद्धि कहै, हो मगरमछ बहु फिर समीप । खाई न सके ही सुभट नै, हो कर्म जोग इक दीमो दीप ॥१५४।। हो पुण्य बंध प्रति साहस घोर, कम जोगि पाइ जलतीर । उतरि समुद्र टाढी भयो, हो राजा सेवक राक्षा तीर । कोडीभड तहि देखीयो, हो जलधि मुजह बलि उतरीउ धीर ॥१५॥ हो सिरीपाल का बंद्या पाच, भयो हरष प्रति मंगि न माह । विनो भगति गाढी करी, त्यांह स्यो सुभट भग दे मान । साच वचन हमस्यौ कहो, हो स ण कोण पुरयान !।१५।। हो वोल्या किंकर सुगि सिरीपाल, दलवणपटण सुविसाल । सोभा इंद्रपुरी जिसी, हो राज कर राजा घनपाम । गुनमाल तसु कामिनी, हो कंठ सुकंठ पुत्र सकमाल ॥१५॥ हो गुणमाला इक पुत्री जाणि, गुण लावण्य रूप को खानि । राजा मुनिवर बुझीयो, हो स्वामी गुणमाला भरतार । निमिती कहि कोण तणी, हो जिन मन को सह जाइ विकार ।।१५८।। हो मुनिवर भणं अवधि को जाण, तिर समुद्द मावं तुम थान । नाम तास सिरीपाल कहै, हो गुणमाला सो परणं माइ । कोडी भड पुणि ही मिली, हो इही कादसो भुकतिहि जाइ ॥१५६।। हो राजा सृणि मुनि का भाषीया, हम तो समद तीर राखीया । फर्म जोग तुम आइया, हो दरसण भयो तुम्हारी पाजु । समुद्द मुषह बलि परीयो, हो मन वांछित सह पूगे काज ।।१६।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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