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श्रीपाल रास
हो देखि सेट्टि कंपिबि सह लोग, हो गाली देह जप तमु जोग । पापी प्रजुति ते करा, समुदि प्राणि बोल्यो सह साथ । सुदरि चरणा ढोक घो, हो धीनति करि बहु जोडो हाथ ।।१४४॥
हो धवल सेट्ठि तब जोड्या हाथ, क्षमा करो हम उपरि मात । हम अपराच कीयो घणों, हो प्रोहण में जे वणिक कुमार । चरण बंदि विनती करो, हो माता तुम ये होड़ बार ||१५||
हो सुण्या बचन जे बाण्या..
कमा, रणमजूसा उपणी दया । कोप विषाद सबै तज्यो, को दीयो देवतो सुन्दरि मान । पूजा करि चरणा तणी, हो तक्षण गया पापणं थान ॥१४६॥
हो पडिज सुभट जो सभुद मझारि, कहाँ कथा सुभ बात विचारि । नमोकार मनि समरीयो, हो उपहरी उच्चाल्यो बरवीर । नमसकार मुख थे कहे, हो सागर मुजह तिरं अत्ति धीर ।।१४७।।
हो जिण को माम वर्ष प्रतिसार, जिण के नाम तिरं भवपार । सिंघ सर्प पीई नहीं, हो जिण के नाम जाइ सह रोग । सूल सफोदर शाकिनी, हो पाच सूर्ग तणा बहु भाग ।।१४।।
हो मिण के नाइ अग्नि होइ नीर, बिण के नाई होइ विसखीर । सत्र मित्र होइन परण, हो गूज नाहि भूत पिमाघ । राज चोर पीई नहीं, हो जिणि के नाम सासुतो वाउ ।। १४६।।
हो जिम के नाइ होइ धरि रिद्धि, जिष्य के नाम काज सह सिद्धि । सुर नर सहु सेवा करे, हो मागर प्रति गहीर है पाई ।। परबत बांबी सारिखो, हो जिण के नाम होइ सुभ लाइ ।।१५१।।
हो जिन के नाम पाप थे छूटिय, खोटा बेडी सकुल सूटि । सर्प माल होइ परणवं, हो मजन लोग कर सह काणि । जिण के नाम गुणां चढ़, हो जिण के नाम + में को होइ हाणि ॥१५२॥