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महानि नह रावत
कहै डंभ सुन मोह विचार, सुने घियक तनो परवार । राय विवेक भयो वैराग, मुक्त तनो मुख जाप्यो मार्ग ।। ३५३ ।
राती समति तास गुरवंत, अग्घ सिंघासन सोमै संत । चडी कंवर सोभै वराग, दूजो संजम मोडे भाग ।।३५४।।
लोभ तीजो कंवर विचार, बाल मित्र प्रानंद अपार । मंत्री करणां पुत्री तास, दूगि मुलित्ता बहुत विकास ।।३५५।।
बडो सुभट समिकत परधान, सव ही सभा चतुराई जान । तिह का सेवग प्रति बलव ४, पसम विनवं सरल प्रचड ।।३५६।।
द्वादस नप संतोष समान, मन्यां सौभै अति असमांन । छत्र वयो गुरू को उपदेश, सति सिंघासन तासु नरेस ।।३५७।।
सिद्धि वुधि सुदर अनिनार, सोभ चंवर लावण हार । सील सनाह भागम प्रयोहार, क्रीया कपाल, अन्न कोठार ।:३५८।।
सप्त तत्व शुभ राज विभूति, पालं चतुर बिहु दिसि हुँती। राज करें विवेक मोवाल, मुख मैं जात न जाने काल ।।३५६।।
पही विवेक विभूति विचार, डंभ कहै मोह सुनिहार । सालि मोह इंभ की वात, विसमै भयो पसीनो गात ।।३६७।।
राजा मोह कोपर कहै, मुझ प्रागे विवेक किम रहै । तिहं मैं बन सिंध सु ईछा फिरं, तिह वनगज कसें संचरं ॥३६१।। जैले सूर कर प्रगास, तारा तनो नही तिहा बास । मोह तनो बरी जो होई, जीवत फिरती न सुणी कोई ।।३६२।।
मोह महा जिह कोहसाल, तिहुँ को पायो थेगो काल । मुझ सम लीब नही कोई जान, तीन लोक फिरि मोह ांन ।।३६३।।
बहु सेन्यां ले उपर चल्यो, जीवत विवेक सत्रु पाकष्डो । मकरधुज सुनि ठाढो भयो, देख्यो पिता हमारो कीयो ॥३६४।।