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________________ १६२ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल सूणी बात सह पंथी तणी, अपनी अंगिसी लाई घणी । मान देई बुझी पनहार, कोंन नगर भास नर नार 11३०६।। कौन धर्म चाल इस थान, तिह को हम सु करी बखान । तब बोली पटन को नार. बात सुनो हो पंथी चार ॥३०७।। दोष अठारा रहत्त सुदेव, गुरू निगुष सुजानो एव । बाणी सहीत्त जु जिनवर कही, असो धर्म मन में सही ॥३०८।। पाखडी मिथ्याति होई, जान न हेई नगर में सोई । बात सुनी तव फोरयों भेष, लगा देन धर्म को पेष ॥३०६।। ध्यानी मोनी अति ही भया, तंपिन नगर मध्य चालिया । वोन र सुमधुरी शान, कप: रूपातीमो मन का 22.!! दोहा- पिछी कमंडल' हाथ ले, भेष दिगम्बर घार । इर्या पंथ वहु सोधता, पहुतां नगर मंझार |॥३१॥ चौपई- भोजन काज नगर में फिर, तास भेद ले लों संचरें । कोटवाल ग्यानो मन धनी, चेष्टा दुरी देखी लिद तनी ।।१२।। ग्यांन सुभट चारू बूझिया, भेय दिगम्बर फदि थे लीया । प्राया तुहै चोर न्योहार, दीस नहीं शुद्ध प्राचार ।।११३॥ वचन सुनत्त तव ही स्वल भल्या, तपिन नग्न मोझ थे चल्या । भागा दुष्ट डूम पाखड़, हत्या कूर पद परचंड ।।३१४।। राव बिवेक समा सुभ घणी, कोटवाल प्रायौ तिहां मणौ । स्वामि एह तो जती म होई, कही राषका सेशु जोई ।६३१५।। सांभली वचन विवेककुमार, कुड कपट वोल्या ति पार । सांची बात कही निरताई, मठ पहूं तो लिकपलि जाई॥३११।। फूड कपट वोल्या तंपिणां, मन बचन विवेक हम तनां । पाप नगर दुष तनो निधान, राजा मोह बस तिहं पान ।। ३१०॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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