SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भविष्यदत्त चौपई १५६ प्रोरण घदित करण व्यापार , मदन दीप दौठो अतिसार । और भाव लघु भाइ कीयो , धिन धिन बं भाई को बीयो ।।१२।। पंथ पुराणो देख्यो बाल , देख्यो तीलकपुर महा विसाल । चंद्र प्रभ को थानक जहां , सीतल मंडप सूतो तहां ॥१६६।। कन्या भवसागर, द्वाः जहा तिम्सिी । कामणि संपति वस्त निधान , ले पहुच सी पिता के थानि ।।१६७।। राजादेसी बहु मनमान । अर्सराज नसु कन्यादान । पंति कालि सो संजम लेइसी , तप कर सुभ थानक पहुंचसी ।।१६८।। पूर्व भव के मित्र द्वारा सहायता सुणी वात सुरपति सुख भयो , नमस्कार करि सो चानियो । भवसदंत सूतो तहां गयो , देखत मन मैं बहु सुख भयो ।। १६६।। मन मैं इन्द्र विचार बात , सुतो नही जगाउं भ्रान । पडही डलो हाथि करि लीयो , अक्षर भीति लेख लेखियो ॥१७०।। उद्दिम करि जागी हो मित , सावधान होइ कंचित । बेगौं उतर दिसने जाहु , मन्दिर मोभा बहुत उछाहु ॥१७१!! पंच भूमि उत्त'ग प्रवास | कन्या एक रहै तहाँ बास । सा भवपाणहव तसु नाम, वाणी सर्व सामौद्रीक ठाम ।।१७२।। परणों भोग कोतोहल करो , मंका को मन मै मत करो। पूर्व पुन्य पायो तुम तौँ , घोडो लिायी जाणि जो घणौं ।।१७।। एतौ इंद्र लिस्य यो लेस्त्र गभाष', माणिभद में दोन्ही साख । तिया संपदा सहित कुमार , रच्या बीमाण बहुत विसनार ।। १७४।। १. क मति-एतो इंद्र लिखयो लेख सभाष ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy