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भविष्यदत्त चौपई
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प्रोरण घदित करण व्यापार , मदन दीप दौठो अतिसार । और भाव लघु भाइ कीयो , धिन धिन बं भाई को बीयो ।।१२।।
पंथ पुराणो देख्यो बाल , देख्यो तीलकपुर महा विसाल । चंद्र प्रभ को थानक जहां , सीतल मंडप सूतो तहां ॥१६६।।
कन्या भवसागर, द्वाः जहा तिम्सिी । कामणि संपति वस्त निधान , ले पहुच सी पिता के थानि ।।१६७।।
राजादेसी बहु मनमान । अर्सराज नसु कन्यादान । पंति कालि सो संजम लेइसी , तप कर सुभ थानक पहुंचसी ।।१६८।।
पूर्व भव के मित्र द्वारा सहायता
सुणी वात सुरपति सुख भयो , नमस्कार करि सो चानियो । भवसदंत सूतो तहां गयो , देखत मन मैं बहु सुख भयो ।। १६६।।
मन मैं इन्द्र विचार बात , सुतो नही जगाउं भ्रान । पडही डलो हाथि करि लीयो , अक्षर भीति लेख लेखियो ॥१७०।।
उद्दिम करि जागी हो मित , सावधान होइ कंचित । बेगौं उतर दिसने जाहु , मन्दिर मोभा बहुत उछाहु ॥१७१!!
पंच भूमि उत्त'ग प्रवास | कन्या एक रहै तहाँ बास । सा भवपाणहव तसु नाम, वाणी सर्व सामौद्रीक ठाम ।।१७२।।
परणों भोग कोतोहल करो , मंका को मन मै मत करो। पूर्व पुन्य पायो तुम तौँ , घोडो लिायी जाणि जो घणौं ।।१७।।
एतौ इंद्र लिस्य यो लेस्त्र गभाष', माणिभद में दोन्ही साख । तिया संपदा सहित कुमार , रच्या बीमाण बहुत विसनार ।। १७४।।
१. क मति-एतो इंद्र लिखयो लेख सभाष ।