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________________ १४६ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल तुम ने देखो जिम सपिणी , हे निरलज्ज निकसि तक्षणी । मेरी घर थे वेगी जाह , उपजे हीये बहुत विसदाहु ॥२०॥ कठिण बचन सुणि स्वामी तणा , कमलथी बोली क्षिणा । कोण कुकर्म मैं कीयो घणौ , जहि तम बहुत क्रोध उपनौ ।।२१।। स्वामी मन मै देखी जोइ , बिण अपराध न काढे कोइ । नाहक पस न घाले घाव' , तुम छो माणस को परिजाउ ।।२२।। स्वामी ज़ा को सुस्मि हो सुखी , थारं दुखि हूं गाढ़ी दुखी । माता पिता तुम बांषि बाहु , चित्त विचार करौ हो साह ।।२३।। धनपति से कई सुणि मार , तुम सम लिया नहि संसार । कोइ मह मुक करो विकार , तहि थे थारो कर निसार ।।२४।। कमलश्री ले सास उसास , कंत क्रोध छाडिउ घरबास ! नेणा नीर कर असमान , चाली मातपिता के पानि ।।२५।। घोहड़ा.- पाप पुन्य बंधन कर, तिसा उदी पं प्राइ । से तरु माली सींचही , तिसका सो फल खाइ ॥२६॥ जीवडी बंध सुभ असुम, फर हरिष विसमाद । कुसी पालो कीट बस्यौं, पडं मोह प्रमाद ।।२७।। कम्मह बंध्यो जीवडौ, माड़ो धणी पसार । मन दोहावै पापणी, पाव नहीं लगार ।।२।। पापण कर्म बुरा कर, अर परन दे (वे) दोस । बाय तिसों जिसो लुण, हीया न कीजे सोम ॥२६॥ कमलश्री का माता-पिता के घर जाना जोप- कमल माता धरि गई , पौलि द्वारि ट्राती रही । देखि बिलखी मात तस तात होयडा मध्य विचारो बात ।।३।। जोमण याह नही कोइ काज , विण कोकी किम आइ प्राजि । कीयो कुकर्म ठाणि मति वुरी , तीह थे सेट तजी सुदरी ।।३१।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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