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________________ उनका अकस्मात स्वर्गवास हो गया और वे इसके एक भी प्रकाशन को नहीं देख सके लेकिन मुझे यह लिखते हुये प्रसन्नता है उन्हीं के सुपुत्र साहू अशोक कुमार जी जैन ने हमारे विशिष्ट याग्रह पर प्रकादमी का संरक्षक बनने की स्वीकृति दे दी है साथ ही में अपना पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन भी दिया है। इसी प्रकार जब मैंने श्रीमान सेठ गुलाबचन्द जी साहब गंगवाल से उपाध्यक्ष बनने की स्वीकृति चाही तो उन्होंने भी तत्काल ही अपनी स्वीकति भिजवादी । इसी तरह श्रीमान् लाला अजीतप्रसाद जी जैन ठेकेदार देहली का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने सर्व प्रथम विशिष्ट सदस्यता के लिये पौर फिर विशेष प्राग्रह करने पर अकादमी के उपाध्यक्ष के लिये अपनी स्वीकृति भिजवादी। अकादमी की स्थापना के सम्बन्ध में जब मैने श्रीमान सेठ कन्हैयालाल जी सा जैन पहाडिया,मद्रास वालों से बात चलायी और उनसे उसकी अध्यक्षता स्वीकार करने के लिये प्राग्रह किया तो उन्होंने अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुये दूसरे ही दिन बातचीत करने के लिये कहा । मैं एवं वैद्य प्रभुदयाल जी कासलीवाल भिषगाचार्य दोनों ही दूसरे दिन उनके पास पहुंचे तो उन्होंने अकादमी के कार्य को आगे बढ़ाने के लिये कहा और उसका अध्यक्ष बनना भी स्वीकार कर लिया। इसी तरह श्रीमान् से कमलचन्द जी कासलीवाल एवं श्री कन्हैयालाल जी सेठी ने भी उपाध्यक्ष बनने की जो स्वीकृति दी है उसके लिये हम उनके प्रामारी हैं। प्रकादमी के सदस्य बनाने के फार्म में मुझे जिनका विशेष सहयोग मिला उनमें श्रीमती सुदर्शना देवी जी छाबड़ा, पैद्य प्रभृदयाल जी भिषगाचार्य, श्रीमती कोकिला जी सेठी, ५० अमृतलाल जी दर्शनाचार्य वाराणसी एवं श्री गुलाबचन्द जी गंगवाल, श्री महेशचन्द जी जैन, डॉ० चान्धमल जैन एवं डॉ. कमलचन्द सोगाणी उदयपुर के नाम विशेषत: उल्लेखनीय है । मैं इन सभी महानुभावों का हृदय से प्राभारी हूं जिन्होंने संचालन समिति अथवा विशिष्ट सदस्यता के रूप में अपनी स्वीकृति भेजी है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि समाज के साहित्य प्रेमी महानुभाव समूचे हिन्दी न साहित्य के प्रकाशन में भागीदार बनकर सहयोग देने का कष्ट करगे। साहित्य प्रकाशन के इस कार्य में कितने ही विद्वानों ने सम्पादक के रूप में और कितने ही विद्वानों ने लेखक के रूप में अपना सहयोग देने का प्राश्वासन दिया है। श्री महावीर प्रकादमी की इस योजना में हम अधिक से अधिक विद्वानों का सहयोग लेना चाहेंगे। अभी तक देश एवं समाज के कम से कम ३० विद्वानों की वीकृति प्राप्त हो चुकी है । ऐसे विद्वानों में डा. सत्येन्द्र जी जयपुर, डा. रामचन्द्र
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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