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________________ १२६ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल मारवाड़ में विहार करते थे। अजमेर, चित्तोड़, चाकसू, नागौर एवं प्रामेर में होने वाले भट्टारकों ने सांभर को अपने बिहार से खूब पाचन किया था । महाकवि वीर प्राशाधर, घनपाल एवं महेश्वरसूरि ने अपनी कृतियों में शाकम्भरी का बड़ी श्रद्धा के साथ उल्लेख किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध जैन कवि ब्रह्म रायमल्ल ने संवत् 1625 में ज्येष्ठ जिनवर कथा एवं जिन लाडूगीत बी रचना सांभर में ही की थी। दोनों ही लघु रचनाएं हैं । नरायना से जो प्राचीन प्रतिमाएँ उपलब्ध हुई है ये इस प्रदेश एवं उसकी राजधानी सांभर में जैन संस्कृति की विशालता पर प्रकाश डालती हैं । संवद 1524 में यहां जिनचन्द्राचार्य कृत सिद्धान्तसार संग्रह की प्रतिलिपि की गई ।' संवत् 1750 में यहाँ भट्टारक रत्नकीति सांभर पधारे और श्राविका गोगलदे ने सूक्तमुक्तावली टीका की पांडुलिपि लिखवा कर उन्हें भेंट की थी। संवत् 1829 में अजमेर के भट्टारक विजयकीति के अम्नाय के हरिनारायण ने पुषणसार की प्रति करवा कर प० माणकचन्द को भेंट में दी थी। 19 वीं शताब्दी में यहाँ श्री रामलाल पहाडमा हुए जो अपने समय के अच्छे लिपिकार थे। वर्तमान में नगर में 4 दिगम्बर जैन मन्दिर हैं जिन में विशाल एवं प्राचीन जिन प्रतिमाएं विराजमान है। नगर के धान मण्डी के मन्दिर को जो प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है वह यहां के निवासियों की साहित्यिक रुचि की मोर समेत करने वाला है। नगर में इस युग में भी जैनों की अच्छी बस्ती है और वे अपने प्राचार व्यवहार तथा शिक्षा प्रादि की दृष्टि से प्रदेश में प्रमुख माने जाते हैं। ___ सांगानेर राजस्थान की राजधानी जयपुर से १३ किलोमीटर पर दक्षिण की ओर स्थित सांगानेर प्रदेश के प्राचीम नगरों में प्रमुख नगर माना जाता है । प्राचीन ग्रन्थों में इस नगर का नाम संग्रामपुर भी मिलता है । १० वीं शताब्दी के पूर्व में ही इस नगर के कभी अपने विकास की चरम सीमा पर पहुंच कर प्रसन्नता के प्रसून बरसाये तो कभी पतन की ओर दृष्टि डाल कर उसे आँसू भी बहाने पड़े। १२ वीं शताब्दी तक यह नगर अपने पूर्ण वैभव पर था । वहा विशाल मन्दिर थे । धवल एवं कलापुर्ण प्रासाद थे । व्यापार एवं उद्योग था । इसके साथ ही वहां थे-सभ्य एवं -...-... १. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची, पंचम भाग, पृ० ८३ । २, वही, पृ० ७०६। ३. वहीं, पृ० २६० ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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