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महाकवि की काव्य रचना के प्रमुख नगर
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संवत् 1628 में ब्रह्म रायमल्ल हरसोर पहुंचे और कहीं पर भादवा सृष्टी 2 बुधवार संवत् 1628 के दिन प्रधुम्नरास की रचना समाप्त की । कवि ने हरसोर का बहुत ही संक्षिप्त परिचय दिया है जो निम्न प्रकार है--
हो सोलहस पठविस विचारो, हो भादव सुदि दुतीया युधिवारो गढ हरसौर महा भलो जी, हो देवशास्त्र गुरू राखं मानो ।।1941
17 वीं शताब्दि के प्रथम चरण में हरसोर में श्रावकों की अच्छी वस्ती थी और वे देवशास्त्र गुरू तीनों को ही भक्ति करते थे।
जयपुर के पाटोदी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संवत् 1662 को एक भविष्यदत्त चरित्र (श्रीधरकृत) की पांडुलिपि है जो जिसकी लिपि अजमेर में प्रजन जोशी द्वारा की गयी थी इसके दूसरे पोर लिखा हुआ है कि हरसोर में राजा सांवलदास के शासन काल में खण्डेलवाल देव एवं उसकी पत्नी देवलदे वारा ग्रन्थ की प्रतिलिपि करायी गयी थी।
झुंझन
झुझुनु शेखावाटी प्रदेश का प्रमुख नगर है । देहली के समीप होने के कारण यहाँ दिगम्बर जैन भट्टारको का बराबर आवागमन बना रहा। 15 वीं शताबिद में होने वाले चरित्रवर्द्धन का झुझनु के प्रदेश ही प्रमुख कार्य क्षेत्र था। नगर में दिगम्बर एवं प्रबेताम्बर दोनों ही का जोर था । संवत् 1516 में इसी नगर में भट्टारक जिनचन्द के एवं मुनि सहस्त्रकीत्ति के शिप्य तिहुणा ने त्रैलोक्यदीपक (वामदेव) की प्रतिलिपि करके अपने गुरू जिनचन्द्र को भेंट की । ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराने वाले थे खण्डेलवाल जाति के सेठी गोत्र वाले संधी मोटना उसकी पत्नी साह एव उसके परिवार के अन्य सदस्यगण । पंचमी प्रत के उद्यापन के उपलक्ष में प्रस्तुत ग्रन्थ प्रतिलिपि करवाकर तत्कालीन भट्टारक जिन चन्द को भेंट स्वरूप दिया गया था ।
__ संवत् 1615 में ब्रह्म रायमल्ल भुमुनु पहुँचे । उनका वहाँ अच्छा स्वागत किया गया और इसी नगर में नेमीश्वररास समाप्त किया। कवि ने नगर का जो संक्षिप्त
१. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की अन्य सूची, चतुर्थ भाग, पृ. १८४। २. राजस्थान के जैन साहित्य, पृ०६६। ३. स्वस्ति सं० १५१६ बर्षे ........... ............सद्गुरूवे प्रदत्त ।